देहरादून। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कांग्रेस को आगामी रण से पहले एक के बाद एक पोस्टों से उलझा दिया है। मुख्यमंत्री चेहरा से लेकर संगठन की सामूहिकता तक के मुद्दे पर घेराबंदी की है। उनका साफ कहना है कि पोस्टर और मंचों से मुझे बेदखल करने पर सामूहिक आवाज कभी नहीं उठी। जब पार्टी की असमंजस को हटाने की बात की तो दनादन सुर उठने लगे।
हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर तीन दिनों में तीन अलग-अलग पोस्टों से आगामी चुनाव में पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा तय करने की मांग को लेकर आक्रामक अंदाज में उतर आए हैं। उनकी इस पोस्ट के बाद गुटबाजी में बंटी कांग्रेस की अंदरुनी कलह भी जोर पकड़ने लगी है। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश की जुगलबंदी हरीश रावत के बयानों से अलग है।
हरीश रावत ने अपनी लिखी एक और नई पोस्ट के जरिए प्रदेश संगठन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाये हैं।
हरीश रावत ने पोस्ट में लिखा है, ‘मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होने को लेकर संकोच कैसा? यदि मेरे सम्मान में यह संकोच है तो मैंने स्वयं अपनी तरफ से यह विनती कर ली है कि जिसे भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया जायेगा मैं, उसके पीछे खड़ा हूंगा। रणनीति के दृष्टिकोण से भी आवश्यक है कि हम भाजपा द्वारा राज्यों में जीत के लिये अपनाये जा रहे फार्मूले का कोई स्थानीय तोड़ निकालें। स्थानीय तोड़ यही हो सकता है कि भाजपा का चेहरा बनाम कांग्रेस का चेहरा, चुनाव में लोगों के सामने रखा जाये ताकि लोग स्थानीय सवालों के तुलनात्मक आधार पर निर्णय करें।’
उन्होंने कहा, ” मेरा मानना है कि ऐसा करने से चुनाव में हम अच्छा कर पाएंगे, फिर सामूहिकता की अचानक याद क्यों? जो व्यक्ति किसी भी निर्णय में, इतना बड़ा संगठनात्मक ढांचा है पार्टी का, उस ढांचे में कुछ लोगों की संस्तुति करने के लिए भी मुझे एआईसीसी का दरवाजा खटखटाना पड़ता है, उस समय सामूहिकता का पालन नहीं हुआ है और मैंने उस पर कभी आवाज नहीं उठाई है, पार्टी के अधिकारिक पोस्टरों में मेरा नाम और चेहरा स्थान नहीं पाया, मैंने उस पर भी कभी कोई सवाल खड़ा नहीं किया! यहां तक की मुझे कभी-कभी मंचों पर स्थान मिलने को लेकर संदेह रहता है तो मैं, अपने साथ अपना मोड़ा लेकर के चलता हूं ताकि पार्टी के सामने कोई असमंजस न आये तो आज भी मैंने केवल असमंजस को हटाया है, तो ये दनादन क्यों?”