चुनावों में जाति (Caste factor ) मायने रखती है. चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का. यूपी विधानसभा चुनाव 2022में भी यही देखने को मिला. सभी पार्टियों ने अपने-अपने हिसाब से जातियों को साधने की कोशिश की. जाति के हिसाब से उम्मीदवार उतारे. जाति देखकर टिकट बांटा गया. जाति साधना और उसी हिसाब से टिकट देना लगभग सभी पार्टियों का ट्रेंड रहा है. राजनीति की भाषा में इसे सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता है. बिहार चुनाव में यह प्रमुखता से देखा गया. ठीक वैसा ही चलन यूपी चुनाव में भी दिखा. पार्टियों ने अपने कोर वोटर के लिहाज से टिकट दिए. उदाहरण के लिए, समाजवादी पार्टी ने पिछड़ी जातियों को सबसे अधिक टिकट दिए, तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सवर्णों या अगड़ी जातियों को. इसी राह पर अन्य पार्टियां चलीं.
भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपने बयानों में इस बात को लेकर मुखर रहती है कि उस पर अगड़ी जातियों का कोई ठप्पा नहीं लगा क्योंकि उसका मंत्र सबका साथ सबका विकास वाला है. लेकिन टिकट वितरण में यह बात निर्मूल साबित होती है. इस बार के चुनाव में बीजेपी का टिकट वितरण देखें तो अगड़ी जाति के कैंडिडेट की तादाद अधिसंख्य है. यूपी में 86 सीटें एससी-एसटी के लिए रिजर्व है. इस बार का ट्रेंड बताता है कि बीजेपी ने एससी-एसटी को उन सीटों पर टिकट दिए जो इस खास वर्ग के आरक्षित थीं. दूसरी तरफ एसपी और बीएसपी ने सामान्य सीटों पर भी एससी-एसटी के उम्मीदवार उतारे.
अगड़ी जाति के उम्मीदवारों के लिए टिकट की जहां तक बात है तो सभी पार्टियों ने इस वर्ग का खयाल रखा और अपने उम्मीदवार बनाए. यूपी चुनाव में सबसे अधिक 177 ब्राह्मणों को तो 122 राजपूत/ठाकुर उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा गया. बनिया या वैश्य को 52 टिकट बंटे तो भूमिहार उम्मीदवारों के खाते में 11 सीटें गईं. ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट देने में कांग्रेस आगे रही और उसने 72 कैंडिडेट को टिकट थमाए. बीजेपी ने 68, तो बीएसपी ने 65 और एसपी ने 40 ब्राह्मण उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा.
राजभर समुदाय को बीजेपी ने दिए 5 टिकट
यूपी चुनाव में राजभर की गूंज खूब सुनाई पड़ी. ओमप्रकाश राजभर अपने को इस जाति का अगुआ बताते हैं और इसी जाति के इर्द-गिर्द चुनाव लड़ते हैं. इस चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी एसबीएसपी या सुभासपा का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ था. दिलचस्प बात है कि राजभरों को जब टिकट देने की बात आई तो बीजेपी सब पर भारी पड़ी और उसने इस जाति से 5 उम्मीदवार उतारे.
समाजवादी पार्टी ने 4 राजभर उम्मीदवारों को टिकट दिए, वहीं बीएसपी ने तीन और कांग्रेस ने एक. बिहार की तरह यूपी चुनाव में भी कुर्मी जाति पर खास ध्यान रखा गया. बीजेपी ने इसमें बढ़त हासिल की और 35 कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट दिए. इसके बात एसपी ने 34, बीएसपी ने 22 और कांग्रेस ने 20 कुर्मी उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे.
अगड़ी जाति के कितने उम्मीदवार
बीजेपी ने इस चुनाव में प्रमुख जातियों (डॉमिनेंट कास्ट) के 175 उम्मीदवार उतारे जिनमें सबसे अधिक संख्या ब्राह्मणों की रही. 69 ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे. उसके बाद ठाकुर या राजपूत की संख्या रही. पिछले दो साल के बयानों पर गौर करें तो यूपी में कहा जाता था कि सीएम योगी के राज में ब्राह्मणों को दरकिनार किया जाता है और ठाकुरों का बोलबाला रहता है. इस आक्षेप को खत्म करने के लिए बीजेपी ने इस बार सबसे अधिक ब्राह्मण कैंडिडेट उतारे और दूसरे नंबर पर राजपूत कैंडिडेट रहे.
बीजेपी और उसके सहयोगियों के पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों की संख्या से पता चलता है कि यह गठबंधन कुर्मी जाति का पक्षधर है. इस बार कुर्मी और सैंथवार जातियों से 35 और मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जातियों से 25 उम्मीदवार मैदान में रहे. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जातियों से बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को मैदान में इसलिए उतारा, क्योंकि चुनाव से ठीक पहले इस समुदाय के दो प्रमुख नेता अलग हो गए थे.