जांच एजेंसियों और पुलिस द्वारा आरोपियों के वकीलों को नोटिस और सम्मन भेज कर बुलाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर मामला शुरू किया है। कोर्ट ने 14 जुलाई को प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ में केस सुनवाई के लिए लगाया है।
पीठ में सीजेआई के साथ ये जज होंगे शामिल
पीठ में जस्टिस के. विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया भी शामिल होंगे। आरोपियों को सलाह देने वाले वकीलों को जांच एजेंसियों द्वारा सम्मन या नोटिस भेजने का ये मामला उस समय उठा था जब गत जून में ईडी ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार और प्रताप वेणुगोपाल को सम्मन भेजा था।
हालांकि बाद में ईडी ने 20 जून को सर्कुलर जारी कर जांच अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वकीलों को कोई नोटिस या सम्मन नहीं भेजा जाएगा। अगर अपवाद स्वरूप ऐसा करना पड़ा तो पहले ईडी डायरेक्टर की मंजूरी लेनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी चिंता
इसके बाद गुजरात के एक मामले पर सुनवाई के दौरान गत 25 जून को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश केवी विश्वनाथन और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने जांच एजेंसियों और पुलिस द्वारा आरोपियों के वकीलों को सम्मन भेजे जाने की घटनाओं पर चिंता जताई थी। कोर्ट ने उसी दिन संकेत दे दिये थे कि वह इस मामले पर विचार करेगा।
न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा
पीठ ने टिप्पणी की थी कि किसी मामले में पक्षकारों को सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकीलों को जांच एजेंसियों, पुलिस द्वारा सीधे बुलाने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और यहां तक कि न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा होगा।
कोर्ट ने विचारणींय प्रश्न भी तय किए थे
कोर्ट ने विचारणींय प्रश्न भी तय किए थे। कोर्ट ने कहा था कि दो प्रश्न विचारणीय हैं। पहला कि जब कोई व्यक्ति पक्षकार को केवल सलाह देने वाले वकील के रूप में जुड़ा हो, तो क्या जांच एजेंसी, अभियोजन पक्ष, पुलिस को सीधे वकील को बुलाना चाहिए।
और दूसरा सवाल है कि मान लीजिए एजेंसी के पास ऐसा मामला है जहां व्यक्ति की भूमिका केवल वकील की नहीं बल्कि कुछ और है तब भी क्या उन्हें सीधे सम्मन जारी करना चाहिए या ऐसी असाधारण स्थिति के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इन दोनों मुद्दों को व्यापक आधार पर संबोधित करने की जरूरत है क्योंकि वकीलों की ईमानदारी और निडरता से अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन करने की क्षमता है।