संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का कहना है कि कोविड-19 से निपटने के लिए करीब 11 टास्कफोर्स बनाई गई हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर में महिलाओं की संख्या जीरो है। जबकि केवल छह फीसद टास्कफोर्स ऐसी काम कर रही हैं जहां पर पुरुष और महिलाओं की बराबर भागीदारी है। संगठन की प्रमुख अचिम स्टेनर द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि हम जो आज फैसला कर रहे हैं वो भविष्य में आने वाली हमारी जनरेशन और हमारी इस पृथ्वी को प्रभावित करेंगे। उनका कहना है कि लगातार सुधार तभी संभव है जब इस महामारी के बाद महिलाएं दुनिया को एक नया आकार देने की भूमिका निभाने में सक्षम हों।
यूएनडीपी और पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के जैंडर इन्इक्वेलिटी रिसर्च लैब के आंकड़े बताते हैं कि विश्व में महिलाओं को आज भी पुरुष के समान दर्जा हासिल नहीं हुआ है। विश्व स्तर पर आज भी लोक प्रशासन में महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा खराब है। यहां पर शीर्ष तीन में से केवल एक पर ही महिला विराजमान है। इस तरह के शोध दुनिया के करीब 170 देशों में किए गए हैं। इनमें पता चला है कि स्वास्थ्य मंत्रालयों में 58 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएं हैं। लेकिन स्वास्थ्य नीति निर्णय में उनकी भागीदारी केवल 34 फीसद ही है। ये शोध ऐसे समय में सामने आया है जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। यूएनडीपी ने आगाह किया है कि मौजूदा महामारी से 2030 तक करीब 10.5 करोड़ महिलाएं और लड़कियां गरीबी में धकेली जा सकती हैं।
यूएनडीपी की रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर चिंता जताते हुए कहा गया हे कि इसमें खतरनाक स्तर पर तेजी देखी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लैंगिक समानता पर विश्व में जो प्रगति पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिली है वो इसकी वजह से खतरे में पड़ सकती है। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कोई भी सरकार तब अधिक संवेदनशील और जवाबदेह होती हैं जब सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होता है और महिलाओं के खिलाफ हिंसा में गिरावट आती है। इसके अलावा ये सुधार तब देखा जाता है जब लोक प्रशासन में महिलाओं का नेतृत्व होता है।