मिशन 2024 (Mission 2024) को लेकर सभी विपक्षी दल एकजुटता (opposition party unity) दिखाने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि अब ‘इंडिया’ (India) में बसपा (BSP) को लाने के अंदरखाने प्रयास किए जा रहे हैं। सब कुछ इसी तरह से चलता रहा तो पांच राज्यों के चुनाव के बाद इसकी आधिकारिक घोषणा हो सकती है। इसमें कांग्रेस सूत्रधार की भूमिका में हैं। कवायद के तहत दोनों ओर के प्रथम परिवारों के बीच कई राउंड की बातचीत भी हो चुकी है।
लोकसभा चुनाव जीतने के लिए इंडिया गठबंधन कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता। बसपा को साथ लाने की कोशिशें उसकी इसी रणनीति का हिस्सा है। यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और बसपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। तब यह बातचीत अपने मुकाम तक तो नहीं पहुंच सकी थी, लेकिन तब से दोनों के बीच संवाद बना हुआ है। राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक पिछले महीने कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच मुलाकात भी हो चुकी है। बसपा की ओर से अब नेतृत्व के पारिवारिक हो चुके एक पूर्व सांसद की भी इसमें अहम भूमिका बताई जा रही है।
ऐन वक्त पर घोषणा की रणनीति
यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा-कांग्रेस की गठबंधन की खिचड़ी पकने के बावजूद विघ्न आ गए थे। तब तय हुआ था कि विधानसभा की 125 सीटों पर कांग्रेस और शेष 278 सीटों पर बसपा लड़ेगी। खबरें लीक हुई और फिर सत्ता पक्ष की ओर से ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी गईं कि कदम पीछे खींचने पड़े। चुनाव के बाद राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से कहा भी था कि हम बसपा को आगे रखकर यूपी में विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, पर वह तैयार नहीं हुई। इस बार लोकसभा चुनाव के ऐन पहले ही आधिकारिक रूप से घोषणा करने की रणनीति है।
बसपा के साथ गठबंधन में ज्यादा रुचि ले रही कांग्रेस
इस सारी कवायद में एक पहलू यह भी है कि क्या इंडिया में बसपा के आने से सपा सहज रहेगी। कांग्रेस नेतृत्व, यूपी में बसपा को साथ लाने में ज्यादा रुचि ले रहा है। इसकी वजह है कि बसपा के पास अभी भी अपना ठोस 10-12 फीसदी वोट बैंक है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का बागेश्वर (उत्तराखंड) विधानसभा सीट को लेकर सपा के खिलाफ दिया गया बयान भी इसी कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि अजय राय ने यह बयान हाईकमान से इशारा मिलने के बाद ही दिया।
संभावना जताई जा रही है कि जैसे-जैसे बसपा के साथ बात आगे बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे इस तरह के और बयान भी आ सकते हैं। गांधी परिवार के नजदीकी नेता के मुताबिक वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ कांग्रेस के अनुभव अच्छे नहीं रहे। उस चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने की बात सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार कहते रहे, लेकिन 145 सीट देने के वादे के बावजूद कांग्रेस को 105 सीटें दी गईं। उसमें से भी अनुराग भदौरिया जैसे 10 प्रत्याशी सपा ने अपने लड़ाए थे। इस तरह से देखा जाए तो कांग्रेस के हिस्से में मात्र 95 सीटें ही आई थीं।