भोलानाथ मिश्र वरिष्ठ पत्रकार : हमारा देश भक्ति आस्था समर्पण की खूबियों वाला विविध तीज त्यौहारों एवं पर्वो वाला है जहाँ पर पुरूष भले ही नास्तिक अथवा नालायक हो सकते हैं लेकिन नारी शक्ति जरूर कोई न कोई पूजा व्रत अनुष्ठान अवश्य कर देवी देवताओं की पूजा अर्चना जरूर करती हैं।यह कहना अनुचित न होगा कि नारी शक्ति की भक्ति आस्था के बल पर पुरूष पुरूषार्थ करने योग्य बन पाते हैं।सुहागिन महिलाएं ही नहीं बल्कि हमारी अविवाहित कन्याएं भी अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए तरह तरह पूजा व्रत अनुष्ठान विविध रूपों में करती हैं।महिलाएं तो अपने सुहाग अथवा संतान के लिए भले ही तमाम पूजा व्रत करती हो लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई पुरूष अपनी पत्नी पुत्र के उज्जवल भविष्य एवं दीर्घायु के लिए कोई पूजा व्रत अनुष्ठान नही करता है।
महिलाओं के विभिन्न पूजा व्रतों में पति की सलामती के लिये होने वाला करवाचौथ विशेष महत्व रखता है जिसमें महिलाओं द्वारा अन्न जल सब त्याग कर अपने सुहाग के दीर्घायु होने की कामना की जाती है।आज हम सबसे पहले अपने सभी पाठकों को करवाचौथ की बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए नारी शक्ति को नमन करते हैं।करवाचौथ की शुरुआत सृष्टि के सृजन के साथ हुयी थी जो आज भी जीवंत एवं प्रासंगिक बनी हुई है और आज भी हर गरीब अमीर सुहागिन महिला अपने सुहाग के लिए व्रत रखती है।मान्यता है कि करवाचौथ व्रत का शुभारंभ सबसे पहले शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती ने भोलेनाथ के लिए रखा था और इसी व्रत से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी।यही कारण है कि सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना से यह व्रत करती हैं और देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।कहते हैं कि लक्ष्मी स्वरुपा माता सीता जी ने भी भगवान राम के लिए करवाचौथ का व्रत करके माता गौरी की पूजा की थी।
इसी तरह जब एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ा था और लाख उपायों के बावजूद भी देवताओं को सफलता नहीं मिल पा रही थी और दानव हावी हुए जा रहे थे तब ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने को कहा। उन्होंने बताया कि इस व्रत को करने से उनके पति दानवों से यह युद्ध जीत जाएंगे। इसके बाद कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी ने व्रत किया और अपने पतियों के लिए युद्ध में सफलता की कामना की थी। महाभारत काल में एक बार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए थे उसी दौरान पांडवों पर कई तरह के संकट आ गए। तब द्रोपदी ने श्रीकृष्ण से पांडवों के संकट से उबरने का उपाय पूंछा था तो उन्होंने उन्हें कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन करवा का व्रत करने को कहा। इसके बाद द्रोपदी ने यह व्रत किया और पांडवों को संकटों से मुक्ति मिल गई थी।
इसी प्रकार प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। एक बार उसका पति नदी में स्नान करने गया था उसी समय एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया था और उसने पति के प्राणरक्षा के लिए करवा को पुकारा था और करवा ने अपनी सतीत्व के प्रताप से मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास पहुंची थी। करवा ने यमराज से पति के प्राण बचाने और मगर को मृत्युदंड देने की प्रार्थना की। इसके बाद यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी शेष है, समय से पहले उसे मृत्यु नहीं दे सकता। तभी करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्हें नष्ट होने का शाप दे देगी।
इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिला और मगरमच्छ को मृत्युदंड मिला।इसी तरह कथा मिलती है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था लेकिन उससे भूख नहीं सही जा रही थी। उसके भाई उससे अत्यधिक स्नेह करते थे और बहन की यह अधीरता उनसे देखी नहीं जा रही थी।इसके बाद भाईयों ने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर नकली चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया। इसके बाद वीरवती का पति तत्काल अदृश्य हो गया।
इसपर वीरवती ने 12 महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन इस कठिन तपस्या से वीरवती को पुनः उसका पति प्राप्त हो गया। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं इसलिए यह व्रत और इसकी पूजा काफी सतर्कता के साथ की जाती है। सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। इस पूजा में प्रयोग होनेवाली हर चीज का अपना एक अलग महत्व है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह व्रत तब तक पूरा नहीं माना जाता है जब तक पत्नी चलनी से चांद और अपने पति का चेहरा न देख लें।सुहागन महिलाएं चलनी में पहले दीपक रखती हैं फिर इसके बाद चांद को और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत पूरा करवाते हैं।