हमारे देश में विभिन्न धर्म एवं संस्कृतियों के लोगों के होने के कारण हर दूसरे दिन व्रत अथवा त्यौहार पड़ते रहते हैं. प्रत्येक व्रत एवं पर्वों के विभिन्न रस्म-रिवाज भी होते हैं, ऐसा ही एक रिवाज करवा चौथ के व्रत में देखने को मिलता है, जब पूरे दिन निर्जल व्रत रखने वाली सुहागन स्त्रियां चंद्रोदय के पश्चात पहले चांद को फिर पति को छलनी से देखती हैं, और फिर पति के हाथों से पानी पीकर व्रत का पारण करती हैं. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर छलनी में ही चंद्रमा अथवा पति को देखने का क्या औचित्य हो सकता है? इस वर्ष 24 अक्टूबर 2021को करवा चौथ का पर्व मनाया जायेगा.
मूल कथा
करवा चौथ की एक कथा के अनुसार सात भाईयों के बीच इकलौती बहन वीरावती सभी भाई उससे बहुत स्नेह रखते थे. शादी के बाद बहन ने मायके में अपना पहला करवा चौथ का निर्जल व्रत रखा तो, उसकी तबियत काफी खराब हो गई. वह बेहोश हो कर गिर गई. तब उसके भाईयों ने एक तरकीब निकालते हुए दूर स्थित एक पेड़ के पीछे एक दीपक जलाया, जिसमें दीपक की लौ नहीं बल्कि रोशनी का एहसास हो रहा था, भाईयों ने बहन को वह रोशनी दिखाते हुए कहा कि चांद निकल आया है. बहन ने भाईयों की बात पर विश्वास करते हुए व्रत का पारण कर दिया. लेकिन उसके पारण करते ही पति की मृत्यु हो गई. तब किसी की सलाह पर बहन ने पूरे साल सारे चौथ का व्रत रखा, जब करवा चौथ आया तो उसने विधिवत व्रत रखते हुए चांद देखने के बाद व्रत का पारण किया. उसके ऐसा करते ही उसका पति जीवित हो गया.
इसलिए छलनी से देखते हैं चांद?
हिंदू धर्म शाष्त्रों के अनुसार करवा चौथ पर छलनी से चांद को अर्घ्य देना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. वस्तुतः चंद्रमा को शुद्धता और पवित्रता का कारक माना जाता है साथ ही चांद सुंदरता और प्रेम का भी प्रतीक है. इसी वजह से करवा चौथ के दिन सुहागने छलनी से पहले चांद और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं. छलनी का प्रयोग आटा या अन्य तरह की चीजों को छानने के लिए किया जाता है. मान्यता है कि छलनी से छनने के बाद किसी भी वस्तु की अशुद्धियां अलग हो जाती हैं. इसी कारण से करवा चौथ के मौके पर छलनी से ही चांद देखा जाता है. छलनी से चांद को देखते समय पत्नी पति की दीर्घायु और सौभाग्य वृद्धि की प्रार्थना करती हैं.