चुनाव आयोग(election Commission) ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव(maharashtra assembly election) के लिए तारीखों का ऐलान(Announcement of dates) कर दिया है। राज्य की सभी 288 सीटों पर 20 नवंबर को वोटिंग होनी है और 23 नवंबर को नतीजे आने हैं। राज्य में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी के बीच है लेकिन कुछ छोटे दल या चेहरे ऐसे भी हैं जो दोनों गठबंधनों का खेल बिगाड़ने को बेकरार हैं। इनमें राज ठाकरे, ओवैसी, जरांगे और अंबेडकर (ROJA) शामिल हैं। फिलहाल. महायुति के घटक दलों भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी सीटों के बंटवारे पर महामंथन कर रहे हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही इन दलों के बीच सीट बंटवारा हो जाएगा।
महाविकास अघाड़ी गठबंधन के घटक दलों (कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी) के बीच भी अभी सीट शेयरिंग नहीं हो सकी है। वहां भी बातचीत अंतिम चरण में है और दीवाली से पहले एक हफ्ते के अंदर सीट बंटवारे पर अंतिम मुहर लग सकती है। इस बीच, शरद पवार ने कहा है कि MVA में 200 सीटों पर सहमति बन चुकी है। दूसरी तरफ चर्चा है कि भाजपा करीब 125 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करेगी। फिलहाल पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने 100 नामों पर चर्चा की है। ये वो नाम हैं जो 2019 में जीतकर आए थे। 2019 में भाजपा ने 105 और संयुक्त शिवसेना ने 56 सीटें जीती थीं। विपक्षी एनसीपी (तब संयुक्त) ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थीं। अब एनसीपी और शिवसेना दो फोड़ हो चुकी है। दोनों का एक-एक धड़ा दोनों गठबंधनों में है, ऐसे में मतदाताओं का रुख क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल छोटे दलों ने दोनों गठबंधनों को टेंशन दे दिया है।
राज ठाकरे लोकसभा चुनावों में बीजेपी के साथ थे लेकिन इस बार उनकी पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS) ने अकेले उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। MNS प्रमुख राज ठाकरे ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी राज्य विधानसभा चुनाव बिना किसी गठबंधन के अपने बूते लड़ेगी। ठाकरे ने कहा, ‘‘हम पूरे जोश के साथ चुनाव लड़ेंगे। चुनाव के बाद उनकी पार्टी सत्ता में होगी। MNS सभी राजनीतिक दलों की तुलना में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।’’ बता दें कि 2006 में गठित MNS ने राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए 2014 और 2019 के चुनावों में एक-एक सीट जीती थी। 2019 में इस दल को 2.25 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2014 में 3.15 फीसदी वोट मिले थे। माना जा रहा है कि ठाकरे शिवसेना के ही वोट में सेंध लगाएंगे क्योंकि उनकी राजनीतिक जड़ें उद्धव की शिवसेना से ही जुड़ी रही हैं।
ओवैसी लगाएंगे INDIA गठबंधन के वोटबैंक में सेंध
हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी AIMIM भी महाराष्ट्र में एक फैक्टर रही है। ओवैसी की पार्टी मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनाव लड़ती रही है। 2019 में AIMIM ने 44 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से दो विधायक जीते थे और पार्टी को 1.34 फीसदी वोट मिले थे। इससे पहले 2014 में AIMIM के दो विधायक जीते थे और उसे 0.93 फीसदी वोट मिले थे। इस बार AIMIM मराठा आंदोलन कार्यकर्ता मनोज जरांगे के साथ गठजोड़ कर सकते हैं, जिन्होंने चुनाव में उतरने का ऐलान किया है।
मनोज जरांगे महायुति को झटका देने की फिराक में
मराठा आंदोलन की वजह से मराठा समुदाय और खासकर युवा मराठों के बीच मनोज जरांगे की लोकप्रियता है। उन्होंने राज्य की मौजूदा सरकार के खिलाफ चुनाव में उतरने का ऐलान किया है। मराठों के बीच लोकप्रिय होने की वजह से मराठवाड़ा का चुनावी समीकरण मनोज जरांगे बिगाड़ सकते हैं। राज्य में मराठों की आबादी करीब 32 फीसदी है। 2019 के चुनावों में मराठा समुदाय का अधिकांश एनडीए के पक्ष में था लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में मराठा समुदाय में एनडीए गठबंधन के प्रति रोष देखा गया था। इस वजह से बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को राज्य में नुकसान उठाना पड़ा था।
2019 में मराठवाड़ा की सभी सीटों पर एनडीए की जीत हुई थी लेकिन इस बार भाजपा के कई दिग्गज इस क्षेत्र में चुनाव हार गए। माना जा रहा है कि जरांगे के चुनावी मैदान में उतरने से एनडीए के वोट बैंक में सेंध लग सकता है। जरांगे पहली बार चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। जरांगे ने कहा है कि अब मुद्दा सिर्फ मराठों का नहीं है। अब मुसलमानों, दलितों और किसानों को भी एकजुट करके महायुति सरकार को उखाड़ फेकेंगे। इस बीच, AIMIM नेता इम्तियाज जलील ने मनोज जरांगे के साथ गठबंधन करने के संकेत दिए हैं। जलील ने जरांगे से मंगलवार शाम को जालना जिले के अंतरवाली सराटी गांव में मुलाकात की थी। अगर यह गठबंधन होता है तो यह दोनों बड़े गठबंधनों (NDA और INDIA) को नुकसान पहुंचा सकता है।
प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी भी करेगी खेल
मनोज जरांगे अकेले महायुति के लिए खतरा बन रहे हैं तो संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी महाविकास अघाड़ के रास्ते का रोड़ा बन सकता है। लोकसभा चुनावों में अंबेडकर INDA गठबंधन के साथ दोस्ती करना चाह रहे थे लेकिन सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनने की वजह से दोस्ती बेपटरी हो गई थी।
हालांकि लोकसभा चुनाव में प्रकाश अंबेडकर बहुत ज्यादा असर नहीं डाल सके। उनकी पार्टी ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उनमें से सिर्फ दो पर ही उनके उम्मीदवार जमानत बचा सके। प्रकाश अंबेडकर खुद अकोला सीट से बुरी तरह हार गये थे। वह 2,76,747 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे लेकिन यह विधानसभा चुनाव है। जानकारों का मानना है कि प्रकाश अंबेडकर इसमें एक फैक्टर हैं और दलितों के बीच लोकप्रिय हैं। 2014 में इस दल को दो सीटों पर जीत मिली थी और 0.62 फीसदी वोट मिले थे, जो 2019 में बढ़कर 4.57 फीसदी हो गए।