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BJP की आंधी में नहीं टिक सकी कांग्रेस और बीएसपी-दोनों दलों के 600 से ज्यादा प्रत्याशियों की जमानत जब्त

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सियासी समर में बीजेपी की ऐसी आंधी चली कि कांग्रेस और बीएसपी कहीं दिखाई ही नहीं दे रही है. सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय वाला मायावती का नारा तो सिर्फ उनकी पार्टी का भी हित नहीं कर सका. वहीं लड़की हूं लड़ सकती हूं की हुंकार भरने वाली प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की स्थिति मायावती से थोड़ी बेहतर दिखाई दे रही है. चुनाव  के समय में एक्टिव रहने वाली प्रियंका गांधी रिजल्ट आने के बाद करीब लापता हो गई हैं. कुछ एक ट्वीट को छोड़कर उनकी तरफ से कोई और बयान नहीं आया. चुनाव के समय में प्रियंका गांधी की रैलियों और रोड शो में खूब भीड़ देखी जाती थी, लेकिन नतीजे आने के बाद साफ हो गया है कि ये वोटर्स नहीं सिर्फ भीड़ ही थी.

बता दें कि प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव के लिए आधी आबादी को ध्यान में रखकर रणनीतियां बनाई थीं. कांग्रेस ने इस चुनाव के लिए लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा दिया था. 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने 144 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिसमें से 137 महिलाओं की जमानत जब्त हो गई. इस विधानसभा चुनाव में जमानत जब्त होने का रिकॉर्ड भी कांग्रेस के नाम रहा. 387 कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. वहीं दूसरे नंबर पर बीएसपी रही.

कांग्रेस में उठ रही विरोध की आवाजें

बसपा के 290 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. वहीं BJP के 3 और समाजवादी पार्टी के 6 उम्मीदवारों को भी जनता का आशीर्वाद नहीं मिल सका और उनकी जमानत जब्त हो गई. कांग्रेस की हार के बाद प्रियंका गांधी मीडिया के सामने नहीं आईं, लेकिन कांग्रेस के अंदर विरोध की आवाजें उठने लगी हैं. कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य जीशान हैदर ने ट्वीट कर लिखा कि प्रियंका गांधी के आने के बाद पार्टी के 30 नेताओं ने साथ छोड़ दिया, इसमें पूर्व विधायक और सांसद शामिल हैं. इस ट्वीट के बाद जीशान को पार्टी निकाला घोषित कर दिया गया. जिसके बाद जीशान ने एक पत्र लिखकर पार्टी आलाकमान से पूछा कि उन्होंने ऐसा कौन सा कार्य किया, जिसकी वजह से उन्हें पार्टी से निकाला घोषित कर दिया .

उत्तर प्रदेश की सियासत में प्रिंयका गांधी की फुल फ्लेज एंट्री 2019 से हुई. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रियंका को कांग्रेस महासचिव बनाया गया, साथ ही उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया गया था. 11 फरवरी 2019 को प्रियंका गांधी ने लखनऊ में रोड शो करके अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की, उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में हुआ करते थे. लोकसभा चुनाव के बाद 14 जुलाई 2019 को प्रियंका को पूरे यूपी का प्रभारी बना दिया गया.

बीएसपी का कांग्रेस से भी बुरा हाल

10 सितंबर 2021 को प्रियंका गांधी बतौर यूपी कांग्रेस प्रभारी लखनऊ पहुंची और कांग्रेस के लिए रणनीतियां बनाना शुरू किया. प्रियंका गांधी कुछ दिन के लिए यूपी आती और फिर चली जाती थीं. जिसके बाद बीजेपी नेताओं ने प्रियंका गांधी को पॉलिटिकल टूरिस्ट कहना शुरू कर दिया. वहीं बीएसपी प्रमुख मायावती का हाल प्रियंका गांधी से भी बुरा है. प्रियंका गांधी तो बीच-बीच में जमीनी आंदोलनों में शामिल होती रही, लेकिन मायावती पूरे 5 साल लापता रहीं, वह घर से बाहर नहीं निकलीं. फरवरी 2022 में अचानक से मायावती सामने आईं और यूपी फतह करने की बात कहने लगीं. लेकिन चुनावी नतीजे आते ही उन्होंने मीडिया और मुसलमानों को हार के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद प्रियंका गांधी जिस तरह से लापता हुईं हैं, उससे बीजेपी के आरोपों को बल मिला है.

पार्ट टाइम सियासत का दौर खत्म!

इस बार के विधानसभा चुनाव ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि सिर्फ जमीन पर रहने वाले नेता ही चुनाव जीत सकते हैं. पार्ट टाइम सियासत का दौर अब खत्म हो गया है. राजनीति में अगर प्रांसगिक बने रहना है तो फुल टाइम सियासत करनी पड़ेगी फिर चाहे मायावती हों या प्रियंका गांधी. नेताओं को यह समझने की जरूरत है कि अगर वह जमीन पर नहीं दिखेंगे तो जनता के पास भी ऑप्शन की कमी नहीं है .बीजेपी की ताकत यही है कि उसके कार्यकर्ता घर घर पहुंचें. वहीं देश यूपी की सियासत में बीएसपी और कांग्रेस सिर्फ पार्ट टाइम पार्टी बनकर रह गई हैं.