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आखिरकार टूट ही गया मुख्यमंत्री आवास का मिथक

इस विधानसभा चुनाव में एक के बाद एक कई मिथक टूटे हैं। जिनमें से एक मिथक यह भी था कि जो भी मुख्‍यमंत्री न्यू कैंट रोड स्थित नए मुख्यमंत्री आवास में रहने आया, वह कुर्सी पर ज्यादा दिन बने नहीं रह पाया। पर इस बार सीएम पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद भी सीएम की कुर्सी में दोबारा बैठने से यह मिथक टूट गया।आपको बता दें कि सालों से यह कयास लगाए जाते रहे हैं कि जो भी मुख्‍यमंत्री इस आवास में रहने आया उसे सत्ता गंवानी पड़ी है। राज्य गठन से पहले यहां राज्य अतिथि गृह हुआ करता था। राज्य गठन के बाद पहली अंतरिम सरकार में इसे मुख्यमंत्री आवास बना दिया गया।

जब कांग्रेस सत्ता में थी तो पहली सरकार में मुख्यमंत्री रहे पंडित नारायण दत्त तिवारी इस आवास में पूरे पांच साल रहे। इसके बाद पुराने भवन को ध्वस्त कर नई इमारत बनाने का फैसला लिया गया। करोड़ों की लागत से पर्वतीय वास्तुकला के आधार पर नया भवन बनाया गया। 2007 में भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री बने भुवन चंद्र खंडूड़ी के समय इस भवन का निर्माण कार्य पूरा हुआ। वह अपने परिवार के साथ यहां रहे, लेकिन बीच में ही उन्हें मुख्‍यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।

इसके बाद नए मुख्यमंत्री डाक्‍टर रमेश पोखरियाल निशंक भी यहां रहे और उनकी भी कुर्सी चली गई। उनके बाद भाजपा ने फिर से मुख्यमंत्री के रूप में भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया। तब भुवन चंद्र खंडूड़ी ने इस आवास को केवल कार्यालय के रूप में इस्तेमाल किया। लेकिन 2012 के चुनाव में भाजपा की भी सत्ता चले गयी।

इसके बाद कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो विजय बहुगुणा मुख्‍यमंत्री बनकर इस आवास में पहुंचे। लेकिन दो वर्ष का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उनकी कुर्सी चली गई। इसके बाद हरीश रावत ने इस आवास से दूरी बनाए रखी। लेकिन वर्ष 2017 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।

नए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अब इस मिथक को तोड़ने के लिए वास्तुशास्त्र का भी सहारा लिया था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ जब पुष्‍कर सिंह धामी मुख्‍यमंत्री बने तो वह इस आवास में रहने लगे। 2022 के विधानसभा चुनाव में भले ही अपनी सीट नहीं बचा पाए लेकिन मुख्यमंत्री की दौड़ में जीत गए।