कोरोना के कोहराम ने अस्पतालों में आईसीयू बेड, ऑक्सीजन और दवाओं की कमी की पोल खोल दिया है। स्वास्थ्य सुविधाओं को सम्भाल रहे विशेषज्ञों को कहना है कि कोरोना के हल्के लक्षण वाले मामलों को सेल्फ आइसोलेशन में भी कंट्रोल किया जा सकता है। घर में रहते हुए बीमारी के कुछ खास लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी हो गया। नई दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने लोगों से अपील किया है कि वे तुरंत अस्पताल की तरफ दौड़ने की बजाए बीमारी के वॉर्निंग साइन पहचानें और जरूरत पड़ने पर ही अस्पताल जायें। उन्होंने कहा कि अगर आप होम आइसोलेशन में हैं तो लगातार डॉक्टर्स के संपर्क में रहें। हर राज्य में हेल्पलाइन की सुविधा बनाई गई है जहां मरीज सुबह-शाम फोन करके जानकारी ले सकते हैं। डॉ गुलेरिया ने बताया कि यदि किसी मरीज की सैचुरेशन 93 या इससे कम है या फिर आपको तेज बुखार, छाती में दर्द, सांस में तकलीफ, सुस्ती या कोई अन्य गंभीर लक्षण नजर आ रहा हैं तो तुरंत डॉक्टर्स से संपर्क करें। ऐसी स्थिति में अस्पताल जायें। इस स्थिति में मरीज को घर में रखना ठीक नहीं है।
स्टेरॉयड के ओवरडोज से रोगियों को नुकसान
डॉ. गुलेरिया ने बताया कि रिकवरी रेट अच्छा होने से अस्पतालों में बेड या ऑक्सीजन की जिस समस्या का हमने सामने किया था। वह अब काफी हद तक कंट्रोल में आ चुकी है। राज्य और केंद्र सरकार ने कई अस्पताल खोल दिए हैं। ऑक्सीजन की आपूर्ति भी बढ़ा दी गई है। कैम्प में सुविधायें मिल रही हैं। डॉ. गुलेरिया ने स्टेरॉयड के ओवरडोज को लेकर भी लोगों को सचेत किया था। उन्होंने कहा था कि स्टेरॉयड के ओवरडोज से रोगियों को नुकसान हो सकता है। खासतौर से जब इनका इस्तेमाल बीमारी के शुरुआती स्टेज में किया जाता है। इससे फेफड़ों पर भी बुरा असर पड़ सकता है। उन्होंने कोविड इंफेक्शन के दौरान दवाओं के दुरुपयोग को लेकर सख्त आगाह किया है।
डॉ. गुलेरिया ने कहा था कि लोगों को लगता है कि रेमेडिसविर और तमाम तरह के स्टेरॉयड रिकवरी में मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है। इस तरह की दवाएं या स्टेरॉयड सिर्फ डॉक्टर्स की सलाह पर ही दिए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर का वैज्ञानिकों को पहले से ही अंदाजा था। वायरस म्यूटेट होकर इतना ज्यादा इंफेक्शियस हो जाएगा, यह अनुमान नहीं था। कोरोना के मामले पिछली बार धीमी रफ्तार से बढ़े थे तो हेल्थ केयर सिस्टम को तैयारी करने का समय मिल गया था। कोरोना की दूसरी लहर इतनी तेजी से आई कि देश के हेल्थ केयर सिस्टम को तैयारी का बिल्कुल समय नहीं मिला। अब सभी अस्पताल इसे लेकर गंभीरता से काम कर रहे हैं। मरीजों को भी लक्षण पहचानकर सेल्फ आइसोलेट होने की जरूरत है।