भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने पूरी दुनिया को डरा कर रख दिया है. भयावह बात तो ये है कि तीसरी लहर की भी चेतावनी दे दी गई है. लेकिन कभी किसी ने इस बात की जांच करने की कोशिश की कि भारत में कोरोना संकट अचानक तीव्र हुआ है या फिर धीरे-धीरे? कुछ लोग कह रहे हैं कि स्वास्थ्य प्रणाली को सुधारने में पैसे कम लगाए गए. कुछ लोग नए कोरोना वैरिएंट्स को दोष दे रहे हैं. ये सब सही है…लेकिन सबसे प्रमुख वजहों में से एक है भारत में जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल-कोयला आदि. इन तीनों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. ये रिपोर्ट प्रकाशित की है मशहूर अंतरराष्ट्रीय मैगजीन टाइम्स ने.
टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉय चौधरी ने बताया कि पिछली बार वैज्ञानिकों ने महामारी के शुरुआत में वायु प्रदूषण और कोरोना के संबंधों का खुलासा किया था. ये बात स्पष्ट थी कि वायु प्रदूषण से कोरोना फैलने का खतरा ज्यादा है. भारत में तो कई ऐसे शहर हैं जो दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं. क्योंकि ऐसी जगहों पर जो लोग रहते हैं, उनका रेस्पिरेटरी सिस्टम यानी सांस लेने की प्रणाली पहले ही प्रदूषण की वजह से कमजोर होती है. अब ऐसे लोगों को अगर कोरोना वायरस ने जकड़ लिया तो उनके फेफड़ों की हालत तो खराब हो ही जाएगी.
भारत में भी वायु प्रदूषण और कोरोना के संबंध पर कई रिसर्च हुए है, लेकिन किसी में भी बड़ी तस्वीर नहीं दिखाई गई है. पिछले साल दिसंबर में कार्डियोवस्कुलर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक पर्टिकुलेट मैटर यानी PM प्रदूषण से लोगों को क्रॉनिक एक्सपोजर होता है. ये प्रदूषण पराली जलाने, गाड़ियों के धुएं और इंड्स्ट्री के धुएं की वजह से होता है. पूरी दुनिया में कोरोना वायरस से जितने लोग मारे गए. उनमें 15 फीसदी पहले से ही वायु प्रदूषण की वजह से क्रॉनिक बीमारियों के शिकार थे.