धुलेंडी का त्यौहार होली के दूसरे दिन ही आता है. इस त्यौहार को धुरड्डी, धुरखेल, धूलिवंदन और चैत बदी इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है. वर्तमान समय में जैसे होली के दिन रंग पंचमी मनाई जाती है वैसे ही धुलेंडी के दिन भी रंग पंचमी होती है. लेकिन पुराने समय में आज के जैसे धुलेंडी नहीं बनाई जाती थी. उस समय धुलेंडी मनाने का तरीका अलग था. साल 2021 में धुलेंडी 29 मार्च 2021 को पड़ेगी. आइए इस खास दिन से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में जानते हैं.
- ऐसी मान्यता है कि कलयुग के शुरू में ही विष्णु भगवान ने धुलीवंदन का त्यौहार मनाया था,जिसके बाद से इस की याद में ही यह त्यौहार मनाया जाने लगा. धुलीवंदन क्या तात्पर्य है धूल का वंदन अर्थात लोग एक दूसरे को धूल लगाते हैं.
- इतना ही नहीं होली के अगले दिन जब धुलेंडी पड़ती है तो लोग एक दूसरे के ऊपर धूल कीचड़ मिट्टी तक लगाते हैं. मान्यता है कि होली के दूसरे दिन यानी की धुलेंडी पर उन लोगों के ऊपर सूखा रंग डाला जाता है जिनके घर में किसी की मौत हो गई है. इतना ही नहीं उन लोगों के घर भी जाया जाता है, जिनके यहां गमी हो गई हो. प्रतीकात्मक रूप से उनके घरवालों के ऊपर रंग डालकर कुछ देर उन के पास बैठा जाता है .ऐसा इसलिए क्योंकि घर में गमी के बाद उनके यहां पहला त्यौहार पड़ता है.
- हिरणाकुश ने अपनी बहन को अपने ही बेटे प्रह्लाद को मारने की साजिश रची थी, जिसके बाद भी प्रहलाद बच गए. तो उस समय के लोगों ने इस दिन को प्रहलाद के बचने के रूप में खुशी के तौर पर मनाया. वैसे तो आज भी यह काम किया जाता है, लेकिन भक्त प्रहलाद के बारे में लोग कम ही याद करते हैं.
- आजकल रंग खेलने का प्रचलन पानी में मिलाकर है, तो वही पहले सूखा रंग ही खेला जाता था. बहुत जगह इसका उल्टा होता है. जिस दिन होली जलाई जाती है तब से लेकर रंग पंचमी तक लोग भांग, ठंडाई एक दूसरे के साथ पीते और पिलाते हैं.