दिल्ली की एक कोर्ट (court) ने पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) को झटका देते हुए उनकी जमानत याचिका (bail petition) खारिज कर दी। कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) के नेता की इस दलील को खारिज कर दिया कि शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉउन्ड्रिंग मामले में कार्यवाही में देरी हुई है या मामला धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। कोर्ट का कहना है कि इस देरी के लिए सिसोदिया खुद जिम्मेदार हैं। स्पेशल जज कावेरी बावेजा ने कहा कि पूर्व मंत्री बिना गंभीरता वाले आवेदन दायर करके केस की कार्यवाही में देरी कर रहे हैं।
मंगलवार को अपने 42 पेज के ऑर्डर में जज ने कहा, ‘यह साफ है कि आवेदक, व्यक्तिगत रूप से और विभिन्न आरोपियों के साथ, एक या कई आवेदन दाखिल कर रहा है/बार-बार मौखिक सबमिशन दे रहा है, इनमें से कुछ में गंभीरता नहीं है, वह भी टुकड़ों के आधार पर, ऐसा जाहिर तौर पर मामले में देरी करने के मकसद से किया जा रहा है।’ सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करते हुए जज ने कहा कि आवेदक का यह तर्क कि उसने कार्यवाही में हो रही देरी में योगदान नहीं दिया है या मामला धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, इस दलील को नहीं माना जा सकता।
दरअसल, सिसोदिया ने कहा था कि अभियोजन पक्ष ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि केस छह-आठ महीने में खत्म हो जाएगा, और यदि मुकदमा लंबा खिंचता है या धीमी गति से आगे बढ़ता है तो वह शीर्ष अदालत के 30 अक्टूबर, 2023 के आदेश के अनुसार अगले तीन महीने में जमानत पाने के हकदार हैं। हालांकि, अदालत ने कहा कि मामले की प्रोग्रेस को स्लो करने की कोशिशों के बावजूद, इसकी तुलना किसी भी तरह स्नेल से नहीं की जा सकती। कोर्ट ने आदेश में कहा कि मामले की प्रगति में हुई तथाकथित देरी के लिए साफतौर से आवेदक जिम्मेदार है।
कोर्ट ने 13 महीने जेल में रहने के बाद रिहा हुए सह-आरोपी बेनॉय बाबू के साथ समानता की मांग करने वाली सिसौदिया की दलील को भी खारिज कर दिया और कहा कि उनके खिलाफ आरोपों की प्रकृति (नेचर) में अंतर है। सिसोदिया की इस दलील को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया कि उन्हें अपनी पत्नी की हेल्थ कंडीशन के कारण जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि उनकी याचिका में उनकी रिहाई के लिए किसी भी मेडिकल इमरजेंसी या मेडिकल कंडीशन का हवाला नहीं दिया गया है। जज ने कहा, ‘आवेदक ने अपनी याचिका में कहा है कि परिवार में पत्नी का सपोर्ट करने के लिए उसके अलावा और कोई नहीं है। यह तथ्यात्मक रूप से गलत है क्योंकि आवेदक का एक बेटा है जो उसकी पत्नी की देखभाल कर सकता है।’