वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी आजसू ने झारखंड की 14 में से 12 सीटों पर फतह हासिल की थी, लेकिन इसके पांच महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को झामुमो-कांग्रेस-राजद के गठबंधन से शिकस्त खानी पड़ी और उसके हाथों से राज्य की सत्ता चली गई। लिहाजा, 2024 में यहां भाजपा के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। पहला, 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को दोहराना। दूसरा, विधानसभा चुनाव में राज्य की खोई हुई सत्ता को फिर से हासिल करना।
इन दोनों चुनावी लड़ाइयों में नेतृत्व के लिए भाजपा ने जिस राजनेता को अपना सेनापति चुना है, वह हैं बाबूलाल मरांडी। उन्होंने औपचारिक तौर पर 15 जुलाई को प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभाल लिया।
दरअसल, आज की तारीख में झारखंड के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन के अगुआ सीएम हेमंत सोरेन बगैर शक-शुबहा सबसे बड़े आदिवासी लीडर माने जा रहे हैं। ऐसे में उनके मुकाबले भाजपा की ओर से बाबूलाल मरांडी को नेतृत्व की कमान सौंपे जाने की वजह बिल्कुल सहज-स्वाभाविक है। भाजपा यह जोखिम नहीं ले सकती थी कि हेमंत सोरेन के सामने वह किसी गैरआदिवासी नेता को सेनापतित्व सौंपे।
बाबूलाल राज्य के पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल उनसे बड़ा दूसरा आदिवासी लीडर भाजपा के पास नहीं है। अर्जुन मुंडा भी बड़े कद वाले आदिवासी लीडर हैं, लेकिन वह केंद्र के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं और इस वजह से उन्हें झारखंड की रोजमर्रे की राजनीतिक गतिविधियों से पिछले चार साल से दूर रहना पड़ा है।
झारखंड में 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की लड़ाई की रणनीति क्या होगी, इसे समझने के पहले पार्टी के नए सेनापति बाबूलाल मरांडी की शख्सियत को समझना जरूरी है।15 नवंबर 2000 को जब अलग झारखंड बना तो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा ने मरांडी को राज्य का पहला सीएम बनाया था। इसके पहले तक वह अटल जी की सरकार में राज्य मंत्री थे। राज्य बनने के पहले इस इलाके में भाजपा के जनाधार के विस्तार में मरांडी की अहम भूमिका रही थी। पार्टी की वनांचल प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने संगठनात्मक क्षमता और कौशल का प्रदर्शन किया था। केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें सीएम बनाकर इसी का रिवार्ड दिया था।
सीएम के रूप में बाबूलाल जी का कार्यकाल लगभग ढाई वर्षों का रहा। इस दौरान विकास और प्रशासन के मोर्चे पर उनका प्रदर्शन सराहनीय माना गया, लेकिन डोमिसाइल के संवेदनशील मसले पर लिया गया एक निर्णय उनपर भारी पड़ गया और पार्टी ने कार्यकाल पूरा करने के पहले ही उनकी जगह अर्जुन मुंडा को सीएम बना दिया। इसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में भी अर्जुन मुंडा ही भाजपा का प्रमुख चेहरा रहे। राज्य में दोबारा भाजपा की सरकार बनी।
इधर सीएम की कुर्सी जाने के बाद बाबूलाल मरांडी पार्टी से दूर होने लगे और आखिरकार 2006 में उन्होंने भाजपा से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा नामक पार्टी बना ली। 2009 और 2014 के चुनावों में भी उनकी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन भी किया, लेकिन वर्ष 2019 का चुनाव आते-आते पार्टी की सियासी हैसियत कमजोर पड़ गई। हालांकि मरांडी अपनी ही पार्टी से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे। आखिरकार 2020 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर दिया।
भाजपा को 2019 के चुनाव में सत्ता गंवानी पड़ी थी। राज्य की 28 में से 26 आदिवासी सीटों पर पराजय इसकी प्रमुख वजह रही। ऐसे में भाजपा को डैमेज कंट्रोल के लिए जहां एक कद्दावर आदिवासी नेतृत्व की जरूरत महसूस हुई। वहीं मरांडी को भी भाजपा जैसे सशक्त राजनीतिक संगठन का सहारा चाहिए था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुद रांची आकर उन्हें पार्टी में शामिल कराया। इसके बाद पार्टी ने मरांडी को झारखंड विधानसभा में भाजपा विधायक दल का नेता भी बना दिया।
अब बात 2024 में भाजपा की चुनौतियों और तैयारियों की। लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए 2019 वाला परिणाम दोहरा पाना आसान नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त राज्य में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार थी। अभी राज्य में झामुमो की अगुवाई वाले गठबंधन की सरकार है। अगर कोई अप्रत्याशित स्थिति नहीं बनी तो यह सरकार वर्ष 2024 तक कायम रह सकती है। यह गठबंधन सत्ता में रहते हुए ज्यादा बेहतर संसाधनों के साथ चुनाव लड़ेगा तो भाजपा को भी 2019 की तुलना में ज्यादा ताकत झोंकनी पड़ेगी।
2019 में भाजपा को राज्य की 14 में से जिन दो सीटों राजमहल और सिंहभूम में पराजय झेलनी पड़ी थी, वह एसटी के लिए आरक्षित हैं। हालांकि उसने राज्य की कुल पांच एसटी सीटों में से तीन लोहरदगा, खूंटी और दुमका पर जीत दर्ज की थी। पर कुछ महीने बाद जब राज्य में विधानसभा के चुनाव हुए तो पार्टी 28 में से 26 आदिवासी सीटों पर हार गई और यही राज्य की सत्ता से विदाई की सबसे बड़ी वजह बनी।
दूसरी तरफ हेमंत सोरेन की अगुवाई वाला यूपीए गठबंधन आदिवासी वोट बैंक को लुभाने में सफल रहा। राज्य की सत्ता में रहते हुए बीते साढ़े तीन वर्षों में हेमंत सोरेन ने आदिवासियों और झारखंड के मूल निवासियों से जुड़े मुद्दों को अपनी राजनीति के केंद्र में रखा। उन्होंने आदिवासियों-मूलवासियों से जुड़े जमीनी और भावनात्मक मुद्दों पर एक के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। 1932 के खतियान पर आधारित डोमिसाइल और रिक्रूटमेंट पॉलिसी लाकर उन्होंने झारखंड के आदिवासियों और मूल निवासियों को गोलबंद करने के लिए सबसे बड़ा तुरूप का पत्ता चला था। हालांकि हाईकोर्ट ने इस पॉलिसी को खारिज कर दिया। इसे लेकर भाजपा ने लगातार सरकार को घेरने की कोशिश की। इसपर हेमंत सोरेन ने अपने जवाब में कहा कि 1932 के खतियान की पॉलिसी को भाजपाइयों ने कोर्ट तक पहुंचाकर भले रोड़ा अटकाने की कोशिश की, लेकिन हमने यह मुद्दा छोड़ा नहीं है। हम इसके लिए रास्ता निकालेंगे। सोरेन कहते हैं, “हम शेर के बच्चे हैं, 1932 के खतियान की पॉलिसी हम छोड़ नहीं सकते। हम दो कदम पीछे जरूर हटे हैं पर आनेवाले दिनों में चार कदम आगे बढ़कर लडेंगे।”
भाजपा जानती है कि झारखंड में 2024 में 2019 का लोकसभा चुनाव परिणाम दोहराना है तो सबसे पहले आदिवासी वोट बैंक का सबसे बड़ा शेयर हासिल करना जरूरी है। इसलिए वह संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ से आदिवासियों के अस्तित्व पर खतरा का मुद्दा सबसे प्रमुखता से उठा रही है। इसके अलावा आदिवासियों पर अत्याचार और उनके अधिकारों से जुड़े मुद्दों को पार्टी जोरशोर से उठा रही है। भाजपा यह संदेश देने की कोशिशों में जुटी है कि नरेंद्र मोदी की सरकार आदिवासियों की सबसे ब़ड़ी हितैषी है।
15 जुलाई को प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण समारोह को संबोधित करते हुए बाबूलाल मरांडी ने कहा, “यह नरेंद्र भाई मोदी की ही सरकार है जिसने आदिवासियों के उत्थान और विकास के लिए सबसे बड़े कदम उठाए हैं। मोदी जी के मंत्रिमंडल में एक नहीं, आठ आदिवासी मंत्री हैं। देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद यानी राष्ट्रपति के लिए आदिवासी द्रौपदी मुर्मू को चुनने का साहस इसी सरकार ने दिखाया। भाजपा ने ही आदिवासियों के लिए अलग झारखंड बनाया और केंद्र में आदिवासियों के लिए पहली बार अलग मंत्रालय भी नरेंद्र मोदी की सरकार ने ही बनाया।”
भाजपा हेमंत सोरेन सरकार में सामने आए भ्रष्टाचार के मामलों और कांग्रेस-झामुमो एवं राजद में वंशवाद के मुद्दों को भी भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि हमारी चुनावी लड़ाई का हमारा सबसे बड़ा मंत्र “बूथ जीतो-चुनाव जीतो” है। हम एक-एक बूथ पर फोकस करेंगे। पार्टी के सभी सांसदों, विधायकों, जिलाध्यक्षों और पदधारियों को बूथवार टास्क सौंपे जा रहे हैं।