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हिजाब बैन के फैसले पर बोली मुनव्वर राणा की बेटी, हमारी बेबसी देखो उन्हें हमदर्द कहते हैं…

हिजाब मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने की इजाजत मांगने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य प्रथा का हिस्सा नहीं है। शायर मुनव्वर राणा की बेटी सुमैया ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठाया है। सुमैया ने कहा कि कोर्ट की यह बात सुनकर अजीब लग रहा है कि हिजाब इस्लाम का हिस्सा नहीं है। सुमैया राणा ने कहा कि एक धर्म विशेष को पिछले कुछ दिनों से निशाने पर लिया जा रहा है। मैं अपने पिता की पंक्तियों के जरिए अपने दर्द को बयां करना चाहूंगी।

‘हमारी बेबसी देखो उन्हें हमदर्द कहते हैं,
जो उर्दू बोलने वालों को दहशतगर्द कहते हैं
मदीने तक में हमने मुल्क की दुआ मांगी,
किसी से पूछ ले इसको वतन का दर्द कहते हैं।

फिर से अपने फैसले पर विचार करे कोर्ट : सुमैया

सुमैया राणा ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट की बात सुनकर बहुत अजीब लगा। जब उन्होंने कहा कि हिजाब इस्लाम का हिस्सा नहीं है। सुमैया राणा ने कुरान की आयत नंबर 33 पढ़कर बताया कि अल्लाह की तरफ से कहा गया है की बेटियां जब घर से निकले तो खुदको ढंक कर निकले। यह कुरान कह रहा है। इस्लाम में हालांकि किसी पर जोर जबरदस्ती नहीं है, तालिबानी एक्शन नही लिया जाता। सुमैया ने कहा कि मुझे लगता है कि कोर्ट को अपने फैसले पर फिर से सोचना चाहिए। हमें दूसरा ऑप्शन खोजना चाहिए, अगर कॉलेज में एक ही यूनिफॉर्म है।

 

महबूबा-ओवैसी ने भी उठाए सवाल

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर महबूबा मुफ्ती और असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाए हैं। एआईएमआईएम नेता और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया कि मैं कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हूं। फैसले से असहमत होना मेरा हक है। मुझे उम्मीद है कि याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। ओवैसी ने अगले ट्वीट में लिखा कि मुझे उम्मीद है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ बाकी संगठन भी इस फैसले के खिलाफ अपील करें।

जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को निराशाजनक बताया। मुफ्ती ने कहा कि एक ओर हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर हमने उनकी साधारण पसंद के अधिकार को नकार रहे हैं। यह सिर्फ धर्म का मामला नहीं है, बल्कि चुनने की आजादी का भी मामला है।