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वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि आज,सीएम रावत दी की श्रद्धांजलि

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्य तिथि की पूर्व संध्या पर जारी अपने संदेश में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र ने कहा कि देश की आजादी में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा है। वे साहस की प्रतिमूर्ति थे, तथा अपने मजबूत इरादों की वजह से किसी के आगे नहीं झुके।


मुख्यमंत्री ने कहा कि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने निहत्थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर गोली चलाने से इन्कार कर एक नई क्रान्ति का सूत्रपात किया था। वीर नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के क्रान्तिकारी व्यक्तित्व तथा देश को पराधीनता से मुक्त कराने में उनके योगदान को सदैव याद किया जायेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के सपने के अनुरूप उत्तराखण्ड के समग्र विकास की दिशा में राज्य सरकार निरन्तर प्रयासरत है। उत्तराखण्ड के केन्द्र बिंदु गैरसैंण के विकास एवं इसके समीपवर्ती नैसर्गिक स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से पहचान दिलाने तथा युवाओं के बेहतर भविष्य की भी उनकी संकल्पना रही थी।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्म कालीन राजधानी घोषित करने के साथ इस क्षेत्र में पर्यटन तथा साहसिक पर्यटन की संभावनायें तलाशी जा रही है। युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिये वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना आरम्भ की है, जिसके अन्तर्गत 50 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था की गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के इस वीर अमर सेनानी पर हमें गर्व है।

 

पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे। पठानों पर हिंदू सैनिकों द्वारा फायर करवाकर अंग्रेज भारत में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच जबर्दस्त फूट डालकर आजादी के आंदोलन को भटकाना चाहते थे, लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजों की इस चाल को न सिर्फ भांप लिया, बल्कि उस रणनीति को विफल कर वह इतिहास के महान नायक बन गए।

 

गढ़वाली के जीवनदर्शन पर देश के प्रख्यात लेखक राहुल सांकृत्यायन ने साठ के दशक में लिखी गई पुस्तक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली में इस बात को जोरदार तरीके से उठाया है। इसमें गढ़वाली के हवाले से कहा गया है कि 23 अप्रैल, 1930 को पेशावर में होने वाली पठानों की रैली से पहले अंग्रेजों ने गढ़वाली सैनिकों को इस बात के लिए प्रेरित किया था कि मुुस्लिम भारत के हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे हैं, इसलिए हिंदुओं को बचाने के लिए उन पर गोली चलानी पड़ेगी, लेकिन अंग्रेजों की चाल को पहले से भांपने के बाद चंद्र सिंह ने चुपके से गढ़वाली सैनिकों से कहा कि हिंदू मुसलमान के झगड़े की बातें पूरी तरह से गलत हैं। यह कांग्रेस द्वारा विदेशी माल को बेचने का विरोध है। कांग्रेसी विदेशी माल बेचने वाली दुकानों के बाहर धरना देंगे। जब कांग्रेस देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में क्या हमें उन पर गोली चलानी चाहिए। उन पर गोली चलाने से अच्छा होगा कि हम खुद को ही गोली मार लें।

गढ़वाली तीन राउंड फायर, गढ़वाली सीज फायर

अगले दिन 23 अप्रैल को पेशावर के किस्साखानी बाजार में कांग्रेस के जुलूस में हजारों पठान प्रदर्शन कर रहे थे। गढ़वाली सैनिकों ने जुलूस को घेर लिया था। अंग्रेज अफसर ने प्रदर्शन के सामने चिल्लाकर कहा कि तुम लोग भाग जाओ वर्ना गोली से मारे जाओगे, लेकिन पठान जनता अपनी जगह से नहीं हिली। चंद मिनट बाद ही अंग्रेज कप्तान रिकेल ने आदेश दिया गढ़वाली तीन राउंड फायर, उसके तुरंत बाद ही वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने जोर से कहा, गढ़वाली सीज फायर यह शब्द सुनते ही सभी गढ़वाली सैनिकों ने अपनी राइफलें जमीन पर रख दीं। अंग्रेज अफसर ने जब चंद्र सिंह से इस बारे में पूछा तो गढ़वाली ने उनसे कहा कि यह सारे लोग निहत्थे हैं। निहत्थों पर हम गोली कैसे चलाएं। इस घटना ने न सिर्फ देश में सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश पूरे देश में दिया था, बल्कि गढ़वाली सैनिकों का पूरे देश में एक अलग ही सम्मान बढ़ गया था।

1857 के बाद पहला सैनिक विद्रोह था

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने 23 अप्रैल को तो सैनिकों को भारतीयों पर गोली चलाने से रोक दिया था। अगले दिन 24 अक्तूबर को करीब 800 गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजों का हुक्म मानने से इनकार कर दिया। सैनिक अपनी राइफलों को अंग्रेज अफसरों की तरफ करके खड़े हो गए थे। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और अन्य गढ़वाली हवलदारों ने बंदूकें जमा करने को सैनिकों को राजी करा दिया। उन्होंने अंग्रेजों का कोई भी आदेश मानने से इनकार कर दिया। इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों के विद्रोह करने से अंग्रेजों की चूलें हिल गई थीं। राइफल जमा करने के बाद सभी सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया था।