धार्मिक स्थलों के प्रबंधन (Religious places management) के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सरकार (Government) के काम में दखल देने के मूड में नहीं है। हाल ही में दायर हुई एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट (Supreme Court) ने साफ कर दिया है कि वह धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में खास नीति बनाने के निर्देश सरकार (Government) को नहीं देंगे। याचिका में मांग की गई थी कि हिंदुओं, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय को भी मुसलमानों की तरह पूजा स्थल के प्रबंधन के अधिकार मिलने चाहिए।
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत मिश्रा सुनवाई कर रहे थे। याचिका एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल की गई थी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से भी याचिका को ‘अस्पष्ट’ करार दे दिया गया। इसमें कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर धर्म को अपने धार्मिक स्थल के प्रबंधन का अधिकार है।
क्या बोला कोर्ट
कोर्ट ने कहा, ‘धार्मिक स्थलों के संबंध में सरकार को कोई निर्देश नहीं देंगे कि आप X करें Y करें या Z करें। यह मामला पूरी तरह नीति और संसद का है। हम विधायिका के क्षेत्र में नहीं जाएंगे।’ एसजी ने याचिकाकर्ता को सरकार से बात करने की सलाह दी। याचिकाकर्ता का कहना था कि दिल्ली में कालका मंदिर का प्रबंधन सरकार करती है, लेकिन जामा मस्जिद का नहीं।
ये तीन याचिकाएं हुईं स्वीकार
शीर्ष न्यायालय में तीन और याचिकाएं दाखिल हुईं थी, जहां तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी में धार्मिक स्थलों पर सरकार के कब्जे को चुनौती दी गई थी। कोर्ट का कहना था कि इन याचिकाओं में राज्य की तरफ से बनाए गए कानूनों को चुनौती दी गई है। कोर्ट इस मामले को देखेगी। इन तीन याचिकाओं के लिए कोर्ट में एडवोकेट सीएस वैद्यनाथन, एडवोकेट साई दीपक, एडवोकेट सुब्रमण्यम स्वामी पेश हुए थे।