उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू (M. Venkaiah Naidu) ने शनिवार को जोर देकर कहा कि भारत दुनिया का सबसे सहिष्णु देश है. उन्होंने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता सुरक्षित (Secularism safe) है और यह किसी सरकार की वजह से नहीं है बल्कि इसलिए है कि यहां रहने वाले हर व्यक्ति की खून और धमनियों में यह भावना बहती है. नायडू ने इसके साथ ही प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में देने का समर्थन किया.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा देश महान है. सौभाग्य से भारत फिर उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है और दुनिया अब इसे मान रही है और एक बार फिर भारत का सम्मान कर रही है, हमें कोई नजर अंदाज नहीं कर सकता. हालांकि, कुछ लोग यहां-वहां छोटी चीजें लिख सकते हैं, उसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है. कुछ लोग भारत की प्रगति को पचा नहीं सकते, वे अपच के शिकार हैं. हम उनकी मदद नहीं कर सकते.’’
माउंट कार्मेल इंस्टीट्यूशन की ‘प्लेटिनम जुबली’ पर यहां आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने आरोप लगाया कि पश्चिमी मीडिया भारत के बारे में बहुत ही नकारात्मक खबरें दे रही है, वे इस देश और यहां के लोगों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में हासिल की जा रही बड़ी उपलब्धियों को भूल जाते हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि देश के समक्ष सामाजिक अंतर, गरीबी, लैंगिक असमानता जैसी कुछ चुनौतियां हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत, औपनिवेशिक शासन में विश्वास नहीं करता और या वह दूसरे देश पर अपनी मर्जी नहीं थोपता, भारत का किसी देश पर हमला नहीं करने का लंबा इतिहास रहा है.
भारत दुनिया का सबसे सहिष्णु देश है
उन्होंने कहा, ‘‘…भारत दुनिया का सबसे सहिष्णु देश है, जिसपर कोई भी भरोसा कर सकता है. लोग धर्मनिरपेक्षता पर चर्चा करते हैं, धर्मनिरपेक्षता सुरक्षित है, इसलिए नहीं की यह सरकार या वह सरकार, यह पार्टी या वह पार्टी ऐसा चाहती है. बल्कि यह इसलिए है क्योंकि यहां के हर व्यक्ति के खून और धमनियों में यह है और यह सभी को समझना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि भारत में कोई भी शीर्ष स्थान पर पहुंच सकता है.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मुझे कोई और देश दिखा दीजिए, जहां सभी वर्गों को समान अवसर दिया जाता है. वे क्या हैं, कुछ लोग हमें सिखाने की कोशिश कर रहे हैं? देखिए उन देशों के अंदर क्या हो रहा है, उन कथित अमीर देशों में, मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता. प्रगति के लिए शांति को पहली शर्त बताते हुए नायडू ने कहा कि हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए. कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत, राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मार्गेट अल्वा भी इस कार्यक्रम में मौजूद रहीं. अल्वा इस संस्थान की पूर्व छात्रा रह चुकी हैं. उपराष्ट्रपति ने लोगों को अपनी भाषा और धर्म पर गर्व करने की सलाह दी, साथ ही कहा कि दूसरे को अपमानित नहीं करें.
उन्होंने कहा, ‘‘ हम यहां -वहां कुछ लोगों को देख रहे हैं जिनकी कमजोरी दूसरों को अपमानित करने और उससे आनंदित होने की है, जो ठीक नहीं है. प्रत्येक धर्म अपने आप में महान है. हमें धर्म पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए , धर्म व्यक्तिगत पूजा करने का तरीका है. हमें अधिक हमारी संस्कृति और विरासत पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जो हमारे जीवन जीने का तरीका है.’’ नायडू ने कहा कि वह मातृभाषा में बात कर खुशी महसूस करते हैं. उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में होनी चाहिए क्योंकि इससे समझने, सीखने और संवाद करने में आसानी होगी.
प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मातृभाषा,मां की तरह है. मुझे खुशी है कि हम फिर से जड़ों की हो जा रहे हैं. प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, इसके बाद हम भ्रातृ भाषा और अन्य भाषा की ओर जा सकते हैं, मुझे इसमें कोई समस्या नहीं है…मातृ भाषा आपकी आंखों की तरह होती है, बाकी भाषाएं चश्मे की तरह होती हैं, अगर आपकी आंखे ठीक हैं तो चश्मे भी सही काम करेंगे.’’ उन्होंने खुशी जताई कि नयी शिक्षा नीति में मातृ भाषा को महत्व दिया जा रहा है. नायडू ने साथ ही कहा कि वह अन्य भाषाओं के खिलाफ नहीं हैं. उपराष्ट्रपति ने 4सी ‘‘कैरेक्टर( चरित्र), कैलिबर (क्षमता), कपैसिटी (योग्यता) और कंडक्ट (आचरण) के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि दुर्भाग्य से मौजूदा परिपाटी यह है कि कुछ लोग इन 4सी को दूसरे 4सी ‘ कास्ट (जाति), कम्युनिटी (समुदाय), कैश (नकद) और क्रिमनैलिटी (अपराध) से बदलना चाहता हैं, जो केवल अस्थायी बढ़त दे सकती है.