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बर्थडे स्पेशल: साक्षी मलिक के ऐतिहासिक ‘9 सेकंड’, एक छोटे गांव से ओलंपिक तक का सफर

हरियाणा के रोहतक में जन्मीं साक्षी मलिक भारतीय महिला कुश्ती के इतिहास में एक अलग मुकाम रखती हैं। फोगाट परिवार पर बनी फिल्म ‘दंगल’ तो आप सभी ने देखी होगी। गीता-बबीता की मेहनत और उनके संघर्ष की कहानी से देश वाकिफ है, लेकिन क्या आप साक्षी मलिक की स्ट्रगल स्टोरी जानते हैं?

रियो ओलंपिक में भारत के लिए कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाली देश की इस बेटी का सफर ‘अंगारों’ पर चलने जैसा था। साक्षी का जन्म 3 सितंबर 1992 को हरियाणा के रोहतक जिले के मोखरा गांव में हुआ था। जब साक्षी का जन्म हुआ था, तब बेटी पैदा होने पर हरियाणा में खुशियां नहीं बल्कि मातम मनाया जाता था।

उनके जन्म के कुछ समय बाद ही उनके माता-पिता की शहर में नौकरी लग गई थी। इस कारण उन्हें गांव से दूर शहर में रहना पड़ा। साक्षी अपने दादा के साथ गांव में ही रहती थी। अपने पहलवान दादा सुबीर मलिक से प्रेरित होकर ही उन्होंने रेसलिंग में कदम रखा।

जब 7 साल की हुईं तो उनके माता-पिता उन्हें अपने साथ रोहतक ले आए थे। लेकिन तब तक यह युवा लड़की पहलवान बनने का सपना देख चुकी थी। जब उन्होंने माता-पिता को इसके बारे में बताया तो उन्होंने साफ मना कर दिया। यहां तक कि उनके दादा भी साक्षी के इस फैसले के खिलाफ थे। हालांकि, उनकी जिद के आगे सबको झुकना पड़ा।

12 साल की उम्र में उनका पहलवान बनने का सफर शुरू हुआ और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस धाकड़ महिला पहलवान के नाम यूं तो कई रिकॉर्ड है, लेकिन सबसे खास है ऐतिहासिक ‘9 सेकंड’।

साक्षी मलिक ने महिलाओं की फ्रीस्टाइल कुश्ती के 58 किग्रा भार वर्ग में भारत के लिए कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा था। उससे पहले किसी भी महिला पहलवान को ओलंपिक खेलों में कोई पदक नहीं मिला था। हालांकि, साक्षी मलिक के लिए यह इतिहास रचना आसान नहीं था।

रियो ओलंपिक के क्वार्टर फाइनल में उनका सामना रूस की पहलवान से हुआ, लेकिन साक्षी को हार झेलनी पड़ी। यहां भारत के हाथ से बड़ा मौका लगभग फिसल चुका था, लेकिन कुश्ती के नियमों के मुताबिक रेपेचेज के जरिए दूसरे राउंड में उन्हें खेलने का मौका मिला।

कांस्य पदक के लिए उतरीं भारतीय पहलवान का यह मुकाबला भी काफी चुनौतीपूर्ण था। वह आखिरी मिनटों में कजाकिस्तान की पहलवान से काफी पीछे चल रही थी। पहले राउंड में वह 0-5 से पिछड़ गई थीं और खाता भी नहीं खोल सकी थीं।

हालांकि, उन्होंने मैच खत्म होने से चंद मिनट पहले जोरदार खेल दिखाया और स्कोर 5-5 से बराबर कर दिया। इसके बाद आखिरी के 9 सेकेंड में साक्षी मलिक ने फिर से अपना जौहर दिखाते हुए विरोधी पहलवान को धूल चटा दी और दो अहम अंक हासिल कर ओलंपिक मेडल भारत की झोली में डाल दिया। इस तरह वो ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान बनीं।

इसके अलावा इस पहलवान ने अपने करियर में कई और भी पदक हासिल किए हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 में सिल्वर और 2018 में कांस्य अपने नाम किया। वहीं, एशियन चैंपियनशिप 2015 में 60 किलोग्राम भार वर्ग में उन्होंने कांस्य पदक जीता। 2017 में उन्होंने भारत में हुई एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल अपने नाम किया। इसके अलावा साल 2018 और 2019 की एशियाई चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता था।

2017 में, भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया। उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न से भी सम्मानित किया गया था। 2024 में, वह टाइम पत्रिका की दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल होने वाली पहली भारतीय पहलवान बनीं।

मगर, साक्षी मलिक का सफर जितना यादगार रहा उससे कई ज्यादा बुरा इसका अंत था। पिछले साल भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ भारतीय पहलवानों के विरोध प्रदर्शन के बड़े नामों में से एक साक्षी मलिक ने कुश्ती से अचानक संन्यास का फैसला लिया।

दरअसल, पिछले डेढ़ साल से अपने साथी पहलवानों विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया के साथ यौन उत्पीड़न मामले को लेकर वो संघर्ष कर रही हैं। दिसंबर 2023 में हुए चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह के पाले के व्यक्ति संजय सिंह नए अध्यक्ष चुने गए। इसके तुरंत बाद साक्षी ने प्रेस कांफ्रेंस में हमेशा के लिए कुश्ती छोड़ देने का ऐलान कर दिया।

एक मीडिया इंटरव्यू में साक्षी मलिक ने कहा था कि उन्हें मौका मिला तो वे जरूर कुश्ती संघ को संभालना चाहेंगी। हालांकि, आम चुनाव लड़ने को लेकर उन्होंने पूरी तरह से इनकार किया था। देश और उनके फैंस को यही उम्मीद है कि साक्षी अपना इरादा बदलकर कुश्ती में वापसी करेंगी।