नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता दुर्गा के नौ रूपों में माता ब्रह्मचारिणी दूसरा स्वरूप हैं जो ब्रह्म अर्थात तप की शक्ति की प्रतीक हैं। सदियों तक कठोर तप करने की वजह से इनका नाम ब्रह्मचारिणी हो गया। इस दिन भक्त कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए साधना करते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई के अनुसार भविष्य पुराण में माता ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ बताया है। ब्रह्म का मतलब होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। इस तरह ब्रह्मचारिणी का मतलब हुआ-तप का आचरण करने वाली। माता ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है।
इस स्वरूप में मां ब्रह्मचारिणी बिना किसी वाहन के बगैर नजर आती हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर ने बताया दुर्गाजी के इस स्वरूप की आराधना से कठिनतम स्थितियों में भी मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सिद्धि और विजय मिलती है।
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की कृपा पाने के लिए विधिपूर्वक पूजन कर निम्न श्लोक का जाप करना चाहिए। इसके हिंदी भावार्थ को भी लगातार जप सकते हैं-
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
हिंदी भावार्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। अथवा मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।