दुष्कर्म के एक मामले (a rape case) में दोषियों की सजा (Punishment of the guilty) के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab-Haryana High Court) ने स्पष्ट कर दिया कि ट्रायल कोर्ट (trial court) को सीआरपीसी से बाहर (out of crpc) जाकर सजा सुनाने का अधिकार नहीं है। ऐसा अधिकार केवल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को ही हासिल है।
दुष्कर्म के मामले में आरोपियों ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने जब सजा को देखा तो पाया कि इसमें आखिरी सांस तक दोनों आरोपियों को जेल में रखने का आदेश दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट जब जघन्य अपराध के लिए दंड तय करता है तो मृत्यु दंड के विकल्प में वह उम्रकैद की सजा सुनाते हुए अपनी ओर से कुछ नहीं जोड़ सकता।
इस तरह की सजा देने का अधिकार हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट को अपील पर सुनवाई के दौरान है। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा के साथ आखिरी सांस तक की शर्त लगाई है जो उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने अपील को तो खारिज कर दिया लेकिन सजा में संशोधन कर इससे आखिरी सांस तक की शर्त को हटाने का आदेश दिया है।
यह था मामला
याचिका दाखिल करते हुए रिंकू और अनीश ने सोनीपत ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में बताया गया कि एफआईआर के अनुसार शिकायतकर्ता ने पुलिस को शिकायत दी थी कि 18 फरवरी 2017 को जब वह जागे तो उनकी बेटी घर में मौजूद नहीं थी।
बाद में अनीश ने उसे फोन करके कहा कि उसने शिकायतकर्ता की बेटी को अगवा किया है और उसे छोड़ने के लिए 3 लाख रुपये देने होंगे। इस दौरान नशीला पदार्थ खिला कर दोनों ने पीड़िता से दुष्कर्म भी किया। अदालत ने दोनों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसी सजा के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे घृणित कृत्य के दोषी रहम के हकदार नहीं हैं।