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गोपाष्टमी पर्व 1 नवंबर को, इस तिथि पर पहली बार कान्हा ने चराई थीं गाय

नवंबर महीने की शुरुआत गोपाष्टमी पर्व से हो रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस तिथि पर गाय और भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने इस तिथि पर पहली बार गायों को चराया था। हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पूजनीय माना गया है। इसमें 33 करोड़ देवताओं को वास होता है। गाय का पूजन करने से सभी तरह के सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस बार गोपाष्टमी पर्व 01 नवंबर को मनाई जा रही है। गोपाष्टमी पर्व गायों की सुरक्षा,संवर्धन और उनकी सेवा के संकल्प का ऐसा महापर्व जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि को पोषण प्रदान करने वाली गाय माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु गाय-बछड़ों का पूजन किया जाता है।

गाय की पूजा का महत्व 
गोपाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर गायों को स्नान आदि कराया जाता है और गऊ माता को मेहंदी,हल्दी,रोली के थापे लगाए जाते हैं। इस तिथि पर बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। धूप,दीप,गंध,पुष्प,अक्षत,रोली,गुड़,वस्त्र आदि से गायों का पूजन किया जाता है,आरती उतारी जाती है,इसके बाद गायों को गो-ग्रास दिया जाता हैं। पौराणिक मान्यता है कि गाय की परिक्रमा करके गायों के साथ कुछ दूरी तक चलना भी चाहिए,ऐसा कर उनकी चरण रज को माथे पर लगाने से सुख- सौभाग्य में वृद्धि होती है। गाय की रक्षा एवं पूजन करने वालों पर सदैव श्रीविष्णु की कृपा बनी रहती है। तीर्थों में स्नान-दान करने से,ब्राह्मणों को भोजन कराने से,व्रत-उपवास और जप-तप व हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है वहीं पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने अथवा किसी भी रूप में गाय की सेवा करने से प्राप्त हो जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण कैसे बने गोविंद
श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण जब 6 वर्ष के हुए तो एक दिन यशोदा माता से कहा-मइया!अब मैं बड़ा हो गया हूँ,अब मुझे गोपाल बनने की इच्छा है,मैं गोपाल बनूँ? मैं गायों की सेवा करूँ? मैं गायों की सेवा करने के लिए ही यहां आया हूँ। यशोदाजी समझाती हैं कि बेटा!शुभ मुहूर्त में मैं तुम्हें गोपाल बनाउंगी। बातें हो ही रहीं थी कि उसी समय शाण्डिल्य ऋषि वहां आए और भगवान कृष्ण की जन्मपत्री देखकर कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गौचारण का मुहूर्त निकाला। बालकृष्ण खुश होकर अपनी माता के ह्रदय से लग गए। झटपट माता यशोदा जी ने अपने कान्हा का श्रृंगार कर दिया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगीं तो बालकृष्ण ने मना कर दिया और कहने लगे-मैया!यदि मेरी गायें जूती नहीं पहनतीं तो मैं कैसे पहन सकता हूँ और वे नंगे पैर ही अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ गायों को चराने वृन्दावन जाने लगे व अपने चरणों से वृन्दावन की रज को अत्यंत पावन करते हुए,आगे-आगे गौएं और उनके पीछे -पीछे,बाँसुरी बजाते हुए श्यामसुन्दर तदंतर बलराम,ग्वालबाल तालवन में गौचारण लीला करने लगे। भगवान कृष्ण का अतिप्रिय ‘गोविन्द’ नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पड़ा था क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने गायों और ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर रखा था,आठवें दिन इंद्र अपना अहम त्यागकर भगवान कृष्ण की शरण में आए,उसके बाद इंद्र की कामधेनू गाय ने भगवान का अभिषेक किया और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर सम्बोधित किया।