सोवियत संघ के हिस्सा रहे दो अहम देश अर्मेनिया और अज़रबैजान में जंग शुरू हो गई है. दोनों देशों के बीच कई दशकों से बॉर्डर किनारे पर एक हिस्से को लेकर विवाद चल रहा है, पिछले काफी महीनों से स्थिति तनावपूर्ण थी. लेकिन बीते दिन हालात बदले और युद्ध शुरू हो गया. इस जंग में अबतक 16 जवानों की जान चली गई है, जबकि दो आम लोगों की भी मौत हुई है.
अज़रबैजान के राष्ट्रपति ने देश के नाम अपने संबोधन में लोगों को भरोसा दिलाया है कि उनकी सेना को कुछ ही नुकसान हुआ है, लेकिन जंग जारी है. दूसरी ओर अर्मेनिया का दावा है कि उन्होंने अपने एक्शन में अज़रबैजान के चार हेलिकॉप्टर, तीन दर्जन टैंक और अन्य सेना के वाहनों को खत्म कर दिया है.
नागरनो-काराबख इलाके को लेकर ये पूरा विवाद है, जो कि अभी अज़रबैजान में पड़ता है लेकिन अभी अर्मेनिया की सेना का यहां पर कब्जा है. स्थानीय मीडिया के मुताबिक, इसी इलाके के पास रिहायशी क्षेत्र में शेलिंग शुरू हुई थी जिसकी वजह से हालात युद्ध के बन गए. अब अज़रबैजान ने बॉर्डर से सटे इलाकों में मार्शल लॉ लागू कर दिया है, सड़कों पर सेना चल रही है और हर ओर टैंक ही टैंक हैं. दूसरी ओर अर्मेनिया का कहना है कि जंग की शुरुआत अज़रबैजान ने की है, ऐसे में वो पीछे नहीं हटेंगे.
कहां बसे हैं ये दोनों देश? आपको बता दें कि अर्मेनिया और अज़रबैजान पड़ोसी मुल्क हैं, जो एशिया में ही आते हैं. पूर्व में दोनों ही सोवियत संघ का हिस्सा रहे हैं और यूरोप के बिल्कुल करीब हैं. भारत से करीब चार हजार किमी. की दूरी पर मौजूद अर्मेनिया और अज़रबैजान ईरान और तुर्की के बीच में आते हैं. दोनों देशों के बीच क्यों छिड़ी है जंग? दोनों ही देश सोवियत संघ (USSR) का हिस्सा रहे हैं, लेकिन 80 के दशक के आखिर में जब USSR का पतन शुरू हुआ तो उसके बाद दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ा. ये पूरा विवाद नागरनो-काराबख इलाके के लिए है, जो अर्मेनिया और अज़रबैजान के बॉर्डर इलाके पर है. 1991 में भी दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति बनी थी, तीन साल के संघर्ष के बाद रूस ने दखल दिया और 1994 में सीज़फायर हुआ.