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कृषि कानून: सुप्रीम कोर्ट कमिटी के सदस्य ने चीफ जस्टिस से की ये मांग

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों (Three Farm Laws) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा कमिटी के एक सदस्य ने चीफ जस्टिस (Chief Justice of India) से गुजारिश की है कि पैनल की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए और केंद्र सरकार को भेजी जाए. बता दें कि पिछले साल नवंबर महीने से किसान संगठन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. चीफ जस्टिस को 1 सितंबर को लिखे अपने पत्र में शेतकारी संगठन के प्रेसिडेंट अनिल जे घनवत (Anil J Ghanwat) ने कहा कि कमिटी की रिपोर्ट ने किसानों की सभी चिंताओं को रेखांकित किया है और कमिटी द्वारा की गई सिफारिशें किसानों के आंदोलन (Farmers Movement) के हल का रास्ता साफ करेंगी.

अपने पत्र में उन्होंने लिखा, ‘कमिटी के एक सदस्य के तौर पर खासकर किसान समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर मुझे दुख होता है कि किसानों की समस्याओं का अभी तक समाधान नहीं हुआ है और आंदोलन चल रहा है. मुझे लगता है कि पैनल की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई महत्व नहीं दिया गया है.’ उन्होंने कहा, ‘पूरी विनम्रता से माननीय सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश करता हूं कि कृपया पैनल द्वारा की गई सिफारिशों के लिए रिपोर्ट का सार्वजनिक करें ताकि किसान आंदोलन का शांतिपूर्ण हल निकले और जल्द से जल्द किसानों को मुद्दे का समाधान मिले.’

सुप्रीम कोर्ट को तीन कृषि कानूनों को निलंबित किए जाने और इन कानूनों पर 12 जनवरी को कमिटी का गठन किए जाने की बात करते हुए घनवत ने कहा कि कमिटी को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए 2 महीने का वक्त दिया गया था. उन्होंने अपने पत्र में लिखा, ‘कमिटी ने बड़ी संख्या में किसानों और अन्य साझेदारों से बात करके 19 मार्च 2021 की डेडलाइन से पहले अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. कमिटी ने किसानों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के लिए सभी के विचारों और सुझावों को अपनी रिपोर्ट में जगह दी है.’

इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में घनवत ने कहा, ‘मेरी दिली इच्छा है कि किसान आंदोलन खत्म हो. यह एक ऐसा मुद्दा है, जो देश की अर्थव्यवस्था और कानून व्यवस्था को प्रभावित करता है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में जितनी जल्दी हो, सुनवाई करनी चाहिए. ताकि मामले पर बहस हो सके और दोनों पक्ष अपनी दलीलें रख सकें.’ उन्होंने कहा कि किसान पिछले 9 महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं और कमिटी को रिपोर्ट सौंपे हुए 5 महीने हो गए. लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई जिससे कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जा सके. हमने पूरी संपूर्णता में सबसे सलाह की और महसूस किया कि जब रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा तो अगली कार्रवाई की जाएगी.

घनवत ने कहा, ‘जो भी देश के लिए सही होगा. सुप्रीम कोर्ट को लगेगा. वह ऑर्डर हो जाए या सरकार जो कदम लेना चाहे ले. लेकिन ऐसे ठंडे बक्से में डालकर क्या निकलने वाला है. दर्द होता है. ऐसे किसानों को बारिश में भीगते देखते हुए. इसलिए हमने आग्रह किया है. ऐसे ही रहा तो कई साल गुजर सकते हैं.’ बता दें कि इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने कमिटी का गठन किया था. कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार और केंद्र के बीच बातचीत का अब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है और ‘हमारा विचार है कि कृषि के क्षेत्र में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करने से किसानों और भारत सरकार के बीच बातचीत के लिए एक सौहार्दपूर्ण माहौल बन सकता है और इससे किसानों के विश्वास में भी सुधार हो सकता है.

‘ घनवत के अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा कमिटी में कृषि अर्थशास्त्री और कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन अशोक गुलाटी और दक्षिण एशिया इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और कृषि अर्थशास्त्री डॉ प्रमोद कुमार जोशी शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट ने कमिटी में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान को भी शामिल किया था, लेकिन बाद में वह कमिटी से अलग हो गए. घनवत के पत्र पर जब गुलाटी से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि रिपोर्ट कब सार्वजनिक करनी है. वहीं पीके जोशी ने मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

क्या करनाल में किसानों पर लाठीचार्ज ने उन्हें पत्र लिखने के लिए मजबूर किया? इस सवाल पर घनवत ने कहा, ‘किसानों की एक बड़ी आबादी ने कृषि कानूनों को नहीं पढ़ा है, बल्कि उन्होंने नेताओं का विश्वास किया है.’ हालांकि उन्होंने इस बात का सकारात्मक जवाब दिया कि पत्र लिखने से पहले उन्होंने गुलाटी और पीके जोशी से संपर्क किया था. घनवत ने कहा, ‘वे लोग प्रोफेशनल्स हैं. इसलिए उन्होंने रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया.’ दो महीने के अपने कार्यकाल में कमिटी ने कृषि क्षेत्र के विभिन्न साझेदारों के साथ लगभग दर्जन भर बैठकें की. इन बैठकों में किसान संगठन, फसल उपजाने वाले संगठन, प्राइवेट मार्केट बोर्ड, इंडस्ट्री संगठन, राज्य सरकारें, प्रोफेशनल्स और एकेडमिशियन्स, सरकारी अधिकारियों और अनाज खरीदने वाली एजेंसियां शामिल हैं, लेकिन कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों में से कोई भी कमिटी के सामने पेश नहीं हुआ.