शराब से उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की जबरदस्त आय हो रही है। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान योगी सरकार को शराब से हासिल राजस्व में 74 फीसदी की वृद्धि हुई है। ज्ञात हो कि राज्य के कुल राजस्व का करीब 10 फीसदी हिस्सा शराब से हासिल राजस्व से है। एक आरटीआई आवेदन से यह जानकारी मिली है। यह कमाई इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि पिछले पूरे वित्त वर्ष में देश कोरोना संकट से जूझ रहा था। इस दौरान भी लोगों ने शराब का जमकर सेवन किया।
ऐसे हुई राजस्व की कमाई
वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने शराब की दुकानों पर लगे लाइसेंस शुल्क और आबकारी कर से कुल 30,061 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त किया है। उत्तर प्रदेश में पिछले चार साल में शराब से हासिल राजस्व में 74 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। चार साल में ही राज्य में शराब से हासिल राजस्व 17,320 करोड़ रुपये से बढ़कर 30,061 करोड़ रुपये हो चुका है। सरकार को सबसे बड़ा राजस्व में षराब का महत्वपूर्ण योगदान है। शराब की प्रत्येक दुकान से राज्य सरकार सालाना 1.10 करोड़ रुपये का राजस्व ले रही है।
अखिलेश-मायावती सरकार को मिलता था इतना राजस्व
उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार योगी सरकार के चार साल के दौरान वित्त वर्ष 2017-18 से 2020-2021 के बीच शराब की 2,076 नई दुकानों को लाइसेंस मिला है। ज्ञात हो कि यह लाइसेंस चार अलग-अलग तरह की खुदरा दुकानों के लिए दिए जाते हैं जिसमें देसी शराब, विदेशी शराब, बीयर शॉप और मॉडल शॉप हैं। इसके पहले की अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले सरकार के पांच साल के अवधि में 13 जव 17 में प्रदेश में शराब की 2,566 नई दुकानों को लाइसेंस मिला था। इस दौरान राज्य सरकार का राजस्व 22,377 करोड़ रुपये से बढ़कर 24,943 करोड़ रुपये हो चुका है। राजस्व में करीब 11.5 फीसदी की बढ़त हासिल हुई थी। अखिलेश सरकार से पहले की बसपा प्रमुख मायावती के नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 2007-12 के दौरान 3,621 नई शराब की दुकानों को लाइसेंस दिया था। इस दौरान राज्य सरकार का शराब से राजस्व 106 फीसदी बढ़कर 3,948 करोड़ से 8,139 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।
500 नई शराब दुकानों को हर साल दिया गया लाइसेंस
औसतन योगी और अखिलेश सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान हर साल 500 नई शराब दुकानों को लाइसेंस दिया है। मायावती सरकार ने 724 दुकानों को लाइसेंस दिया। पिछले 15 साल में यूपी सरकार का शराब से राजस्व 8,139 करोड़ रुपये से बढ़कर 30,061 करोड़ रुपये हो चुका है।