भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister of India Narendra Modi) और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन (US President Joe Biden) शुक्रवार को जब पहली बार आमने-सामने मिलेंगे, तो पूरी दुनिया (whole world) की नजर उनकी बैठक और उसके बाद होने वाले एलानों पर होगी। दरअसल, ट्रंप (Trump) के अमेरिकी चुनाव हारने और बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बीच दुनियाभर में कूटनीतिक स्तर (diplomatic level) पर कई बदलाव आए हैं।
खासकर कोरोना महामारी (corona pandemic) की जिम्मेदारी को लेकर चीन (China) की ओर से अपना रुख सख्त करने के बाद से दुनिया की नजरें उस पर टेढ़ी हैं। उधर अफगानिस्तान (Afghanistan) से अमेरिकी सेना (US Army) वापस बुलाने के बाइडन के फैसले के भी दूरगामी परिणाम हुए हैं और आने वाले समय में मध्य एशिया (Central Asia) पर भी चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर खतरे की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और बाइडन के बीच बैठक में इस बार कौन से पांच मुद्दे सबसे ऊपर रहेंगे।
1. रक्षा मामले
2016 में अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझेदार बनने के बाद से ही भारत लगातार अमेरिका की आधुनिक सैन्य तकनीक हासिल करने में सफल रहा है। किसी भी अन्य देश के मुकाबले भारत और अमेरिका की सेनाएं सबसे ज्यादा युद्धाभ्यास में शामिल रही हैं। पिछले 15 सालों में भारत ने अमेरिका से करीब 22 अरब डॉलर (करीब 1.6 लाख करोड़ रुपये) के हथियार खरीदे हैं।
इसके अलावा दोनों के बीच 10 अरब डॉलर (73,825 करोड़ रुपये) के नए समझौते पर भी बातचीत जारी है। नए समझौते में भारत ने तीन अरब डॉलर (22,147 करोड़ रुपये) के खर्च से 30 एमक्यू-9बी प्रिडेटर ड्रोन्स खरीदने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा सी-130जे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और नैसैम्स-II (NASAMS-II) एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने पर भी बातचीत जारी है। भारत ने बीते सालों में अमेरिका के साथ हथियारों के साझा विकास पर जोर देने की कोशिश की है। खासकर फाइटर जेट्स के इंजन और न्यूक्लियर रिएक्टर तकनीक जैसे क्षेत्रों में।
2. अफगानिस्तान और आतंकवाद
पिछले महीने ही जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से सैनिकों को निकालना शुरू कर दिया, तब चीन से लेकर पाकिस्तान तक ने दबी जुबान में अमेरिका पर निशाना साधा था। साथ ही अफगानिस्तान की कमान उसके लोगों के हाथों में सौंपने की वकालत भी की थी। अब देश में तालिबान का राज कायम होने के बाद जहां पाकिस्तान को अफगानिस्तान के कूटनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करने का मौका मिला है, तो वहीं चीन को भी आर्थिक रूप से टूट चुके देश में कई अहम खनिजों के उत्खनन और क्षेत्र में प्रभाव बनाने का मौका दिख रहा है।
भारत के लिए यह खासा चिंता का विषय है, क्योंकि अफगानिस्तान एलओसी के काफी नजदीक है। ऐसे में कश्मीर में आतंकवाद के बढ़ने को लेकर भारत की चिंताएं जगजाहिर हैं। उधर अमेरिका को भी अफगानिस्तान में तालिबान के आने और आईएस के फिर से उभरने का डर सता रहा है। 1996 से 2001 तक जब अफगानिस्तान में तालिबान शासन रहा, उस दौरान भी अल-कायदा जैसे संगठन ने उसकी जमीन का इस्तेमाल दूसरे देशों को निशाना बनाने के लिए किया था। दोनों देशों की इसी चिंता के मद्देनजर मोदी और बाइडन बैठक में इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर बात कर सकते हैं। इसके अलावा अमेरिका पाकिस्तान से उभर रहे आतंकवाद पर निगाह रखने के मकसद से भारत के साथ सहयोग बढ़ाने का एलान भी कर सकता है।
3. जलवायु परिवर्तन
भारत और अमेरिका ने इसी साल यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा 2030 पार्टनरशिप की घोषणा की है। इस साझेदारी का मकसद 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना और दुनियाभर में बढ़ रहे तापमान को दो डिग्री से कम रखने के लिए कदम उठाने से जुड़ा है। जहां अमेरिका लगातार स्वच्छ ऊर्जा का प्रचार कर इन लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश में है, वहीं एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत इकलौता ऐसा देश है, जो पेरिस जलवायु समझौते के तहत किए गए वादों को पूरा करने की ओर अग्रसर है।
4. मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र
सैन्य स्तर पर चीन की बढ़ती ताकत ने दुनिया भर में चिंता पैदा की है। दरअसल, चीन अपने आसपास के समुद्री क्षेत्र पर किसी भी तरह की अंतरराष्ट्रीय गतिविधि और आवाजाही रोकता रहा है और पूरे क्षेत्र को ही अपने अधिकार में बताता आया है। दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में उसके जापान, मलेशिया, फिलीपींस समेत सभी पड़ोसियों से विवाद भी हैं, लेकिन चीन ने इन जगहों पर कई पक्के निर्माण कर अपना कब्जा मजबूत किया है। चिंता की बात यह है कि दुनिया का 60 फीसदी व्यापार (करीब 5 ट्रिलियन डॉलर) इसी क्षेत्र के जरिए होता है और किसी भी तरह के तनाव के समय चीन अपने कब्जों का फायदा उठाने के लिए इस क्षेत्र का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है।
इतना ही नहीं चीन हिंद महासागर के क्षेत्र में भी सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा है। बीते सालों में चीन के कई खुफिया जहाजों को भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन्स) की निगरानी करते हुए भी देखा गया था। इसके अलावा उसने बेल्ट एंड रोड परियोजना के जरिए एशिया से लेकर अफ्रीका तक कई बंदरगाहों पर नियंत्रण हासिल किया है, जिसे लेकर कई बार संशय जाहिर किया जा चुका है। ऐसे में भारत और अमेरिका क्वाड गठबंधन के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने पर भी जोर देंगे।
5. कोरोनावायरस और वैक्सीन
भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर के दौरान टीकों की कमी का मुद्दा काफी जोरों से उठा था। दरअसल, ये वो समय था, जब अमेरिका पर वैक्सीन के कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगाने के आरोप लगे थे। सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला से लेकर सरकार के कई अधिकारियों ने इस मुद्दे को लेकर अमेरिका से बात भी की, लेकिन बाइडन प्रशासन की तरफ से यह प्रतिबंध तब हटाए गए, जब भारत में माहौल अमेरिका के खिलाफ बन चुका था। दो दिन पहले हुई ग्लोबल कोविड-19 समिट में पीएम मोदी ने वैक्सीन के कच्चे माल की सप्लाई चेन खुली रखने की बात कह कर अमेरिका को घेरने की भी कोशिश की थी।
ऐसे में बाइडन और मोदी के बीच कोरोना महामारी और वैक्सीन को लेकर बातचीत तय मानी जा रही है। उधर अमेरिका ने दुनिया के मध्यम और कम आय वाले देशों को वैक्सीन पहुंचाने का वादा भी किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने एलान किया है कि वह क्वाड देशों की मदद से भारत में 1 अरब वैक्सीन की डोज बनाने में मदद करेगा। इन टीकों को बाद में हिंद-प्रशांत क्षेत्र और अन्य कम आय वाले देशों को दिया जाएगा। यानी मोदी और बाइडन के बीच वैक्सीन के उत्पादन के लिए सहयोग पर भी बातचीत तय है।