देववाणी संस्कृत देश की सांस्कृतिक राजधानी बनारस से सेंट्रल विस्टा का नाता जोड़ेगी। देश के नए संसद भवन में राजनेताओं के नाम और पदनाम संस्कृत में नजर आएंगे। काशी विद्वत परिषद के प्रस्ताव को मानते हुए केंद्र सरकार ने इसकी पहल की है। प्राच्य विद्या को संजीवनी देने और जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है। वहीं सरकारी गजट का प्रकाशन भी अब संस्कृत में किया जाएगा और लोकार्पण शिलान्यास में भी संस्कृत भाषा में जानकारियां दर्ज होंगी।
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने बताया कि कई सालों से सरकारी गजट में संस्कृत का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था। सरकार ने सरकारी गजट की शुरुआत में पंचांग को शामिल करने की पहल की। अगले चरण में सेंट्रल विस्टा के निर्माण के बाद पहला काम राजनेताओं के नाम व पदनाम संस्कृत में लिखे जाएंगे। बाबासाहेब आंबेडकर का मानना था कि संस्कृत पूरे भारत को भाषाई एकता के सूत्र में बांधने में सक्षम होगी। उन्होंने संविधान सभा में इसे भारत की राजभाषा बनाने तक का प्रस्ताव दिया था। भविष्य की प्रौद्योगिकी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए भी संस्कृत को बहुत उपयोगी माना जा रहा है।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि काशी विद्वत परिषद ने अमृत महोत्सव शुरू होने पर सरकार को पत्र लिखकर देववाणी संस्कृत भाषा के उन्नयन पर कार्ययोजना बनाने का आग्रह किया था। सरकार ने काशी विद्वत परिषद के आग्रह को समझा और उन्होंने सर्वप्रथम सरकारी गजट में पंचांग को शामिल कर लिया है। आने वाले समय में सरकारी योजनाओं के लोकार्पण व शिलान्यास में भी संस्कृत भाषा में जानकारियां दर्ज की जाएंगी। सरकार द्वारा होने वाले शिलान्यास और लोकार्पण के शिलापट्ट पर भी संस्कृत भाषा में जानकारियां दर्ज होंगी। दिल्ली के बाद इसको सभी राज्यों में लागू करने की योजना पर काम चल रहा है।
पांच हजार सालों से हो रहा है संस्कृत में लेखन
प्रो.द्विवेदी ने बताया कि सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण भी इसकी श्रेष्ठता सर्वस्वीकृत है। पिछले दिनों गूगल ने संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाने की घोषणा की है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुच्छेद में उल्लिखित संस्कृत में पांच हजार सालों से लेखन होता चला आ रहा है। संस्कृत में न केवल हिंदू, बौद्ध, जैन आदि के प्राचीन धार्मिक ग्रंथ लिखित हैं, बल्कि इसमें साहित्य, संस्कृति व ज्ञान-विज्ञान परक लगभग तीन करोड़ से भी ज्यादा पांडुलिपियां मौजूद हैं।