गुजरात विधानसभा चुनाव (gujarat assembly election) में सत्ता विरोधी माहौल (anti-establishment atmosphere) से निपटने और विपक्षी चुनौती से पार पाने के लिए भाजपा नेतृत्व (BJP leadership) इस बार चेहरों के बदलाव से ज्यादा सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों पर ज्यादा जोर दे रही है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्र दोनों को साथ साधने के लिए कई बड़े नेता विभिन्न सामाजिक समूहों में व्यापक पहुंच बना रहे हैं। कई प्रमुख नेताओं के चुनाव मैदान में न होने और टिकटों को लेकर बनी नाराजगी को लेकर भी पार्टी सतर्क है। बगावत थामने के साथ पार्टी ठंडे पड़े कार्यकर्ताओं को भी सक्रिय करने में जुटी हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) का गृह राज्य होने के कारण गुजरात चुनाव भाजपा के लिए बेहद अहम हैं। यही वजह है कि शाह ने राज्य में डेरा डालकर मोर्चा संभाल रखा है। वहीं, प्रधानमंत्री भी ज्यादा समय दे रहे हैं। मुख्य प्रचार अभियान के दौरान भी मोदी दूसरे राज्यों से ज्यादा प्रचार करेंगे। पार्टी को मोदी के जनता से सीधे संवाद पर काफी भरोसा है। उसे उम्मीद है कि मोदी के मोर्चा संभालने के बाद विपक्षी माहौल हवा हो जाएगा।
नए चेहरों से लाभ की उम्मीद
गुजरात में साल भर पहले पूरी सरकार बदल देने वाली भाजपा ने चुनाव के समय लगभग 30% ही टिकट काटे। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी समेत पार्टी के कई प्रमुख नेता खुद ही चुनाव मैदान से हट गए। इसे रणनीति के साथ नाराजगी से भी जोड़ा जा रहा है। हालांकि, भाजपा को नए चेहरों में ज्यादा लाभ की संभावना दिख रही है।
पाटीदारों की बढ़ी पकड़
सूत्रों के अनुसार, पाटीदार समुदाय की नाराजगी इस बार ज्यादा नहीं दिख रही है। हार्दिक पटेल भी भाजपा के साथ हैं और आम आदमी पार्टी ने भी पाटीदार समुदाय के बजाए चारण समुदाय पर मुख्यमंत्री को लेकर दांव लगाया है। ऐसे में सामाजिक स्थितियां भाजपा के अनुकूल रह सकती है।
बाहर से ज्यादा भीतर काम
भाजपा को पार्टी को भीतर ज्यादा काम करना पड़ रहा है। लगातार हो रही जीत से एक वर्ग शिथिल है, जो पार्टी को भारी पड़ सकती है। इसके लिए केंद्रीय नेता तक निचले स्तर पर संवाद और संपर्क बनाए हुए हैं।