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मोदी क्यों हैं मोदी

(रिर्पोट :- सुरेंद्र सिंघल, वरिष्ठ पत्रकार)
 
नई दिल्ली। लोकतंत्र में जनविश्वास और साख किसी भी नेता की सबसे बड़ी जमापूंजी और ताकत होती है। यह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है। अपनी इन दोनों खूबियों को नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में और 2014 से अभी तक यत्नपूर्वक सहेज कर रखा है। यह खूबी लोकतंत्र में जननायकों की सफलता, लोकप्रियता और दीर्घकालिकता में सबसे ज्यादा सहायक सिद्ध होती है। मोदी में यह है। भारत और दुनिया में नरेंद्र मोदी अपनी तरह के अलग राजनेता हैं।
नरेंद्र मोदी ने अपने बौद्धिक चातुर्य और प्रशासनिक दक्षता को देश के समृद्धशाली गुजरात राज्य में मुख्यमंत्री के तौर पर साबित कर दिया था। जब उन्हें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने गुजरात की बागडोर सौंपी थी तब उस राज्य में जबरदस्त राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी था और भाजपा नेतृत्व को वहां की स्थिति पर काबू पाने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। नरेंद्र मोदी पर दांव खेलते वक्त प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जरूर यह भरोसा रहा होगा कि वह गुजरात और देश के लिए बहुमूल्य और कारगर साबित होंगे। अन्य खूबियों के साथ वाजपेयी में लोगों की परख के साथ-साथ दूरदृष्टि का गुण प्रमुख रूप से था। “इन पंक्तियों के लेखक वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सिंघल” की अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जितनी भी मुलाकातें हुईं उनमें वाजपेयी का सरल व्यवहार और निश्छल प्रेम बार-बार मन को मोहता और उनके प्रति लगाव और श्रद्धा को और मजबूत करता था।
इन पंक्तियों के लेखक को पं. जवाहर लाल नेहरू को नजदीक से देखने और मिलने का मौका नहीं मिला लेकिन वाजपेयी से मिलने के बाद महसूस होता था कि संभवतः नेहरू जी भी ऐसे ही रहे होंगे। पिछले चार-पांच दशकों के दौरान जनसंघ या उसके रूपांतरित दल भाजपा ने शीर्ष पर अटल बिहारी वाजपेयी अकेले बने रहे। उनके साथ या उनके करीब लालकृष्ण आडवाणी का स्थान रहा। इस लेखक ने कई बार अपनी मुलाकात के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने आने वालों को यह कहते सुना और देखा है कि मुझसे तो मिल लिए आडवाणी जी से और मिल लीजिएगा और यह कि मेरा क्या मैं तो आपका हूं ही, कृपा होगी आप मेरे स्थान पर आडवाणी जी को मुख्य वक्ता के रूप में ले जाइएगा। जाहिर है कि भाजपा में दूसरे स्थान पर आडवाणी रहे हैं। इन्हीं आडवाणी के रहते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में भाजपा को केंद्र में पूर्ण बहुमत दिला देते हैं और भारत के 14 वें प्रधानमंत्री भी बन जाते हैं।
मोदी क्या हैं, कैसे हैं इसको इसी बात से समझा जा सकता है कि दिल्ली में भाजपा पर आडवाणी की अकेले की पकड़ थी। जिस तरह से इंदिरा गांधी कांग्रेस के महारथियों की लंबी कतार के बावजूद भारत की प्रधानमंत्री बनने में न केवल सफल हो गईं बल्कि भारत की ताकतवर नेता साबित हुई। जिनकी विदेशों में भी खूब तूती बोली। इसी तरह नरेंद्र मोदी आसानी से भारत के सत्ता शिखर पर पहुंच गए और सफल भी हो गए और अहम बात यह है कि शिखर पर बरकरार हैं और भारत की जनता की सेवा करने में दिल से लगे हैं। पिछले माह 17 सितंबर को मोदी का जन्मदिन था। तभी मीडिया में ये खबरे भी छपी कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का कार्यकाल मिलाकर उन्हें 20 वर्ष सत्ता के शिखर पर हो गए हैं। भारत में आज उनसे आगे और उनसे रत्तीभर भी बड़ा कोई राजनीतिक मौजूद नहीं है। उनकी लोकप्रियता लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली से भी ज्यादा है। नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व में जो विलक्षण प्रतिभा और गुण कहीं दबे-छिपे थे वह उन्हें जिम्मेदारी के मिलते ही दिखने लगे।
गुजरात गांधी का प्रदेश है। वहीं के सरदार वल्लभ भाई पटेल और मोरारजी देसाई हुए हैं। इन पंक्तियों का लेखक वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सिंघल केवल महात्मा गांधी से प्रेरित और प्रभावित है। इन्हीं कारणों से गांधी को समझने और जानने की कोशिशें हुई हैं। कई बातें नरेंद्र मोदी में दिखाई देती हैं। जो इन पंक्तियों के लेखक को खास संतुष्टि और आनंद देता हैं। गांधी प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के पदों और दायित्व से कहीं ज्यादा बड़े और अहम थे। मोदी गांधी जितने अधिकार और ताकत का सार्वजनिक जीवन में इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसकी दो वजहें लगती है। एक महात्मा गांधी अपने आपमें स्वतंत्र और स्वच्छंद संस्था थे। जबकि मोदी निर्वाचित हैं और एक लोकतांत्रिक पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं। साथ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा संगठन है जो भाजपा को कहीं न कहीं नियंत्रित और संचालित करता है। लेकिन इसके बावजूद मोदी ने कई फैसले ऐसे लिए हैं जिससे वह राष्ट्रनायक कहलाने के हकदार हैं। उन्होंने नोटबंदी और लोकसभा 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ पहले पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर कारगर हमले करके अपने व्यक्तित्व की ऊंचाइयों और ताकत दोनों को दिखा दिया था। सफल और बड़ा नेता आलोचना, निंदा और घृणित अभियानों से ना डरता है और ना ही विचलित होता है।
1980 के आसपास भी भारत के पास केंद्र में और राज्यों में एक से एक बड़े राजनीतिक मौजूद थे। धीरे-धीरे सब चले गए। अटल बिहारी वाजपेयी उस पंक्ति के आखिरी जाने वाले नेता थे। जाहिर है भारत को बड़े राजनीतिक व्यक्तित्वों के अभाव से गुजरना पड़ा। नरेंद्र मोदी हैं जिन्होंने उस शून्य को भरकर दिखाया। इन पंक्तियों के लेखक वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सिंघल नरेंद्र मोदी के विलक्षण गुण से बेहद प्रभावित है कि वे अपने से कमतर या  करीब-करीब बराबरी के राजनीतिक साथियों को भरपूर सहयोग और समर्थन करते हैं। गांधी जी ने पचासों कद्दावर नेताओं को एक साथ परस्पर सहयोग के साथ काम करने का अवसर प्रदान किया और उन्हें अपना भरपूर समर्थन देकर आगे बढ़ाया। उसी तरह नरेंद्र मोदी भी अपने ऐसे योग्य साथियों को आगे बढ़ाने का भरपूर अवसर देते हैं। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े नेता राजनाथ सिंह को नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में गृह मंत्री बनाए रखा और दूसरे कार्यकाल में उन्हें रक्षा मंत्री जैसा महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा।
मोदी मंत्रिमंडल में जितनी छूट और स्वतंत्र एवं गरिमापूर्ण हैसियत महाराष्ट्र के नितिन गडकरी की हैं उससे सब परिचित ही है। यह नरेंद्र मोदी ही हैं जिनकी उदारता, सदाश्यता और समर्थन के बलबूते उत्तर प्रदेश के सुयोग्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने मनमाफिक शासन करने का अवसर मिला हुआ है जो बिना किसी दबाव और दखल के अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहा है। लोग मोदी-योगी का नाम एक सफल राजनीतिक जोड़ी के रूप में लेते हैं। पं. जवाहर लाल नेहरू सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे और कभी भी उनकी लोकप्रियता और जनता में स्वीकारियता कम नहीं हो पाई। उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने अपने पिता से निकटता के दौरान उनके मजबूत पक्ष और कमजोरियों को ठीक से महसूस किया और जब लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद कांग्रेस की ताकतवर मंडली ने इंदिरा जी को इस मंशा से देश के सर्वोच्च पद की बागडोर सौंपी कि वे किसी गुड़िया की तरह उनके इशारों पर काम करेंगी तो इतिहास यह जानता है कि इंदिरा गांधी ने उन्हें बनाने वालों की क्या गत की। वह अपने बूते आगे बढ़ी और सफल रही।
उन्होंने भारत में भी अपना सिक्का जमाया और दुनिया में भी उसे ऊंचे भाव पर चलाया। पाकिस्तान को 1971 में ऐसा सबक सिखाया जिसे कोई भी देश कभी नहीं भूल सकता। इंदिरा जी की तुलना में नरेंद्र मोदी कई मायनों में बहुत बेहतर हैं। वह अपनी पार्टी के सफल नेताओं और साथियों एवं सहयोगियों की बहुत कद्र करते हैं और उन्हें ताश के पत्तों की तरह नहीं फेंटते हैं और ना ही मोहरों के रूप में इस्तेमाल करते हैं। 1977 के लोकसभा चुनाव के दौरान हेमवती नंदन बहुगुणा ने कई चुनावी सभाओं में इंदिरा जी पर वार करते हुए कहा था कि वे मुख्यमंत्रियों को अपनी साड़ियों की तरह बदलती हैं और जब कोई नेता जमने लगता है तो उसे एक नवजात पौधे की तरह हिलाकर देखती हैं कि उसकी जड़ें मजबूत तो नहीं हो गई हैं। इसके उलट नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में उनके साथ गुजरात में काम कर चुके उनके विश्वसनीय साथी अमित शाह ना केवल गृह मंत्री हैं बल्कि सरदार वल्लभ भाई पटेल से ज्यादा ताकत और अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं।
नरेंद्र मोदी ने अपने से भी ज्यादा समय तक मुख्ममंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को फिर से सत्ता दिलवा दी। जो वह चुनाव में गंवा बैठे थे। हरियाणा में उन्होंने एक अनजान से साधारण कार्यकर्त्ता को जाटों के वर्चस्व वाले राज्य का मुख्यमंत्री बनवाया और पुनः दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया। नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में अरूण जेटली को उच्च गरिमा और सम्मान प्रदान किया। जिसके वह हकदार भी थे। सुषमा स्वराज को पांच साल तक विदेश मंत्री बनाए रखा। नितिन गडकरी के कद और ताकत से सभी परिचित हैं। मोदी अपने साथियों को उनसे असहमत होने का अधिकार भी देते हैं। ऐसा शायद ही कोई मोदी जितना ताकत प्रधानमंत्री करे। नरेंद्र मोदी की सफलता में जो सबसे बड़ी बात यह है कि उनका अपने कट्टर से कट्टर राजनीतिक विरोधियों के प्रति कटुता ना रखना और उन्हें धराशायी ना करना है। सोनिया गांधी ने केंद्र के यूपीए के 10 साल के शासन के दौरान जितना परेशान नरेंद्र मोदी को किया उतना किसी और को नहीं। सरदार मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कितने गड़बड़-झाले और घोटाले हुए किसी में भी नरेंद्र मोदी ने इस परिवार को नहीं घसीटा और ना ही जेलों के सींकचों के पीछे भेजा। नरेंद्र मोदी ने जरूर कांग्रेेस को आकार-प्रकार में छोटा कर दिया।
जो उनका राजनैतिक कत्र्तव्य भी बनता है। लेकिन उसके नेताओं को कोई पीड़ा नहीं पहुंचाई। उनके सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी अपने परिवार की बपौती माने जाने वाली अमेठी सीट को गंवा बैठे। राहुल उनकी बहन प्रियंका और मां सोनिया तीनों नरेंद्र मोदी को खुलकर कोसते और गालिया बकते हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी उन्हें पूरी तरह से अनसुना करके अपनी राजनीतिक परिपक्वता कायम किए हुए हैं। नरेंद्र मोदी को यह समझ है कि 1977 में इंदिरा गांधी को हटाकर सत्ता में आए नेताओं ने किस तरह परेशान किया और उनके प्रति हमलावर बने रहे। इस सबका फायदा इंदिरा गांधी को मिला। नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी और उससे बाहर विपक्ष में अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रति कटुता और घृणा का भाव कभी प्रदर्शित नहीं किया। यह आसान काम नहीं है। बड़े से बड़ा व्यक्ति तत्काल अपने मनोभावों का और प्रतिक्रिया का प्रदर्शन करता हैं लेकिन नरेंद्र मोदी इस मायने में स्टील के बने हुए लगते हैं। बोफोर्स राजीव गांधी को अस्थिर और विचलित करती है। कांग्रेस का बंटाधार करती है। लेकिन राफेल ना मोदी का कुछ बिगाड़ पाई और ना भाजपा का।
बिगड़ा उनका जो उसे राजनीतिक और चुनावी मुद्दा बनाकर अपनी नैया पार लगाने की फिराक में थे। मोदी का दूसरा कार्यकाल भारत के लिए निश्चित रूप से ऐसा है जैसा यदि कोई अवतार भारत की धरती पर अवतरित होता तो तभी वह संभव हो सकता था। भारत और हिंदुओं की दो सबसे बड़ी और मूल समस्याएं या कहिए पीड़ा या दर्द रहे हैं। उनका कारगर इलाज मोदी ने किया। उसी स्थान पर जहां राम जन्में थे, भव्य मंदिर का निर्माण भारत की आने वाली पीढ़ियों को भी आनंद और अतिरेक देगा। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 का खात्मा सिर्फ नरेंद्र मोदी कर सकते थे और कोई नेता नहीं। इससे ज्यादा इस देश को और यहां के हिंदू भाइयों को क्या चाहिए? दोनों चाहत जितने आराम और शांति सद्भाव से पूरी हुई हैं वह अपने आपमें अद्भुत और अविस्मणीय है। नरेंद्र मोदी 2014 में जब प्रधानमंत्री बने तो प्रोफेसर लोकेश चंद्रा जैसे विख्यात विद्वान के मुंह से निकल गया था कि मोदी ईश्वर का अवतार हैं। हम मानते हैं कि राजा में ईश्वरीय तत्व होते हैं। राम, कृष्ण, महावीर बुद्ध और गांधी में जरूर ईश्वरत मौजूद था। मोदी जी में नहीं होगा ऐसा नहीं माना जा सकता।
मनुष्य-मनुष्य होता है ईश्वर नहीं। उनकी जय-पराजय होती है, सफलता विफलता होती है। यह सर्वविदित तथ्य है। नरेंद्र मोदी अभी तक सफल हैं और उनका विजयी रथ उत्तरोत्तर आगे बढ़ रहा है। इसे हम एक संयोग ही मान सकते हैं। उनकी सरकार की अनेक नीतियों के अपेक्षित परिणाम नहीं निकले हैं। जैसे नोटबंदी से दुःख, कष्ट मिला और मोदी की लोकप्रियता पर आंच आईं। उसे मोदी ने खामोशी से महसूस किया और संभवतः भीतर ही भीतर यह संकल्प भी लिया कि पुनः वह इसे नहीं दोहराएंगे। जीएसटी की विफलता और कष्ट अलग से हैं। शायद इसका पूरा दोष मोदी को देना उचित नहीं होगा। कोरोना संक्रमण के दौरान जिस तरह से देश में पूर्णबंदी लागू की गई वह भी अप्रिय और कष्टकर साबित हुआ। यह हमारी नौकरशाही और तंत्र की विफलता ज्यादा है बजाए अकेले मोदी के। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने पूर्णबंदी के दौरान जिस तरह असंवेदनशीलता दिखाई उसने प्रवासी मजदूरों के कष्ट को कई गुणा बढ़ा दिया। यह अलग बात है कि बिहार में विकल्पहीनता के कारण और नरेंद्र मोदी के सहयोग के चलते नीतिश कुमार को फिर से शासन करने का अवसर मिल जाए लेकिन वह इसके बिल्कुल भी हकदार और योग्य नहीं हैं। इसके उलट उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आगे बढ़कर प्रवासी मजदूरों का दिल से साथ दिया और वहां की नौकरशाही में मुख्यमंत्री की मंशा को सकारात्मक रूप से लेकर अपनी अहम् भूमिका अदा की।
जिससे उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों के कष्ट कम हुए और उन्हें अपने घरों पर पहुंचने, पुनर्वासित होने, रोजगार प्राप्त करने के मिल अवसरों ने मोदी की प्रतिष्ठा में वृद्धि की। ऐसे समय में जब देश में शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व का बेहद टोटा है तो राजनीति में रूचि रखने वाले विद्वतजनों और राजनीतिक कार्यकत्ताओ के लिए यह संतोष की बात है कि उनके पास भारत के मौजूदा इतिहास का सबसे सफल और कद्दावर सख्स नरेंद्र मोदी के रूप में मौजूद हैं। देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर योगी आदित्यनाथ का होना परम संतोष और सौभाग्य की बात है। केंद्र में अमित शाह का गृहमंत्री के रूप में होना सरदार पटेल की यादों को जीवंत बना देता है। राजनाथ सिंह का रक्षा मंत्री के रूप में बने होना उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश को आश्वास्त करता है कि भारत उनके हाथों में पूरी तरह से सुरक्षित है। चीन और पाकिस्तान जैसे जन्मजात दुश्मन भारत का बाल भी बांका नहीं कर सकते हैं। यदि किसी ने कुचक्र चला तो इन दुश्मन देशों को ऐतिहासिक रूप से विध्वंस का सामना करना पड़ेगा।
शरद पंवार, नितिश कुमार, नितिन गडकरी, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक ऐसे नेता हैं जिनकी देश में मौजूदगी महसूस की जाती है। नरेंद्र मोदी वैचारिक भिन्नता के बावजूद अपने समय के सभी बड़े नेताओं को पूरी तवज्जो देते हैं, सम्मान देते हैं और उनका अहित नहीं चाहते हैं। यही बड़प्पन नरेंद्र मोदी को देश का शिखर पुरूष बनाता हैं। महात्मा गांधी ने खुद को खुद गढ़ा था। नरेंद्र मोदी भी उस हुनर को जानते हैं जिसमें गांधी पारंगत थे। उम्मीद है देश को लंबे समय तक उनकी सेवाएं मिलेंगी और भारत एक मजबूत राष्ट्र के रूप में और सुदृढ़ एवं समृद्धशाली बनेगा। भारत के लोग उदार और सहनशील हैं। उनमें कृतज्ञता का भाव कूट-कूटकर भरा है। जब तक मोदी अपनी लय को बरकरार रखेंगे तब तक देश की जनता का साथ और समर्थन उन्हें मिलता रहेगा।