Breaking News

Diwali 2021 : जानिए दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस दिन क्यों की जाती है लक्ष्मी-गणेश की पूजा !

प्रकाश का उत्सव दिवाली (Diwali 2021) आज 4 नवंबर को देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. ​इसे देशभर में प्रकाश के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है. हर घर में माता लक्ष्मी और विघ्नहर्ता गणेश का पूजन होता है. इसके बाद पूरे घर को दीप जलाकर रौशन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम रावण का वध करने के बाद विजयी होकर अयोध्या लौटकर आए थे.

प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के सकुशल वापस आने की खुशी में लोगों ने दीपक जलाकर घरों को रौशन किया था. तभी से दीपक जलाने की परंपरा शुरू हो गई. लेकिन ऐसे में अधिकतर लोगों के मन में सवाल उठता है कि अगर ये दीपक श्रीराम की वापसी के उपलक्ष्य में जलाए जाते हैं, तो इस दिन पूजा श्रीराम की जगह, माता लक्ष्मी की क्यों की जाती है ? यहां आज शाम को पूजा का शुभ समय, पूजा विधि और दीपावली के दिन माता लक्ष्मी और गणेश की पूजा की वजह.

दीपावली के दिन पूजा का शुभ समय

दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी पूजन का सबसे शुभ मुहूर्त शाम को 06.10 से 8.00 बजे तक है. इसके अलावा रात 08:10 मिनट से लेकर रात 10:15 मिनट तक रहेगा. स्टेशनरी बुक, शिक्षण संस्थान, जूता फैक्ट्री, कपड़े का कारोबार, पेट्रोल पंप, लोहे, सोने और चांदी का कारोबार करने वालों के लिए दुकान पर पूजा का शुभ समय दोपहर 1 बजे से लेकर शाम को 04:30 बजे तक रहेगा.

इस ​तरह करें पूजा

सबसे पहले एक चौकी पर लाल रंग का आसन बिछा कर गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. चौक बनाएं, लक्ष्मी माता के समक्ष तेल का दीपक और गणेश जी के समक्ष घी का दीपक जलाएं. इसके बाद उन्हें याद कर पूजा शुरू करें. श्रीगणेश भगवान को रोली, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, धूप, दीप आदि अर्पित करें. माता लक्ष्मी को रोली, पीला चंदन, अक्षत, हल्दी की गांठ, धनिया के बीज, कौड़ी, कमलगट्टे, कमल या गुलाब का फूल, धूप आदि अर्पित करें. गणेश भगवान को लड्डू और माता लक्ष्मी को दूध से बने किसी मिष्ठान का भोग लगाएं. खील और बताशे चढ़ाएं. इसके बाद मंत्रों का जाप करें और आरती करें. पूजा के बाद पूरे घर में दीपक जलाएं.

इसलिए होती है माता लक्ष्मी की पूजा

पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से पहले की बात है. तब देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चलता रहता था. देवताओं पर महालक्ष्मी की कृपा थी, इसलिए राक्षस उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते थे. इस बात से इंद्र देवता अंहकार में आ गए थे. एक बार ऋषि दुर्वासा गले में माला पहनकर स्वर्ग की ओर जा रहे थे. रास्ते में उन्हें इंद्र मिले. दुर्वासा ऋषि उन्हें देखकर काफी प्रसन्न हुए और इंद्र की ओर माला फेंकी. लेकिन इंद्र अपनी ही धुन में थे. वो माला इंद्र के गले में न पड़कर ऐरावत हाथी के गले में पड़ गई.

ये देखकर ऋषि दुर्वासा को क्रोध आ गया और उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया कि जिस शक्ति के चलते तुम इतने अहंकार में हो, वो पाताल लोक में चली जाए. इसके बाद माता लक्ष्मी पाताल में चली गईं. माता के पाताल जाने से देवताओं की शक्ति कम हो गई और राक्षस ताकतवर हो गए. इससे परेशान देवत जब ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, तो उन्होंने समुद्र मंथन की बात कही. हजारों वर्ष तक समुद्र मंथन चला. इसमें से अनेक रत्न और अमृत निकला. उसी दौरान माता लक्ष्मी भी पाताल से बाहर आयीं. जिस दिन माता लक्ष्मी का आगमन हुआ, उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या तिथि थी. माता लक्ष्मी के आगमन के समय सभी देवी और देवता हाथ जोड़कर उनकी पूजा कर रहे थे. तभी से ये दिन माता लक्ष्मी को समर्पित हो गया. हर साल कार्तिक मास की अमावस्या ​तिथि को माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है.

इसलिए पूजे जाते हैं गणेश

लक्ष्मी को धन-संपत्ति की देवी कहा जाता है. कहा जाता है कि जहां मां लक्ष्मी की कृपा हो, वहां किसी चीज की कमी नहीं रहती. लेकिन लक्ष्मी को बिना विवेक के संभाला नहीं जा सकता. बुद्धि के देवता श्री गणेश को माना जाता है. माता लक्ष्मी गणेश को अपना पुत्र मानती हैं. यही वजह है कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ विघ्नहर्ता और बुद्धिदाता गणेश का पूजन किया जाता है. ताकि दोनों की कृपा बनी रहे और जीवन में सब कुछ मंगलमय हो.