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हरियाणा में BJP को बड़ी सफलता, हुड्डा के खास कांग्रेस मेयर ने थामा पार्टी का दामन

हरियाणा में 10 साल बाद सत्ता वापसी की बाट जोह रही कांग्रेस पार्टी को विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक बड़ा झटका लगा है. सोनीपत के पहले मेयर निखिल मदान ने आज भारतीय जनता पार्टी (BJP) ज्वाइन कर ली है. नई दिल्ली स्थित बीजेपी पार्टी कार्यालय में उन्होंने केन्द्रीय उर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर, सीएम नायब सैनी, प्रदेशाध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली सहित कई अन्य सीनियर नेताओं की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है. केंद्रीय मंत्री खट्टर ने बीजेपी का पटका पहनाकर उनका पार्टी में स्वागत किया.

बता दें कि सोनीपत विधानसभा सीट से कांग्रेस पार्टी की ओर से सुरेन्द्र पंवार विधायक हैं और पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र हुड्डा का इसे गढ़ माना जाता है. ऐसे में चुनाव से पहले बीजेपी ने हुड्डा के गढ़ में बड़ा धमाका कर दिया है. साल 2020 में हुएं सोनीपत नगर निगम के पहले चुनाव में निखिल मदान कांग्रेस पार्टी की ओर से चुनावी रण में उतरे थे. उन्होंने बीजेपी के ललित बत्रा को करीब 14 हजार वोटों से हराते हुए मेयर की कुर्सी हासिल की थी, लेकिन आज वो बीजेपी के भगवा रंग में रंग गए हैं.

प्रदेशाध्यक्ष को इस्तीफा भेजा

हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान को भेजे इस्तीफे में मेयर निखिल मदान ने कहा है कि वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से अपना इस्तीफा दे रहे हैं. वह और उसका परिवार दो दशकों से कांग्रेस पार्टी के एक वफादार और दृढ़ सदस्य रहे हैं. इन वर्षों में मैंने अपना जीवन पार्टी और उन लोगों के लिए समर्पित कर दिया, जिनका मैं सोनीपत में प्रतिनिधित्व करता हूं.

उन्होंने कहा है कि उनका लक्ष्य और उद्देश्य शुरू से ही अपने निर्वाचन क्षेत्र और अपने राज्य के लोगों की सेवा करना रहा है, अब पार्टी में कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण मैं ऐसा करने में असमर्थ हूं. अपने लोगों और कार्यकर्ताओं की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए, वे आगे की ओर देखने के लिए मजबूर हैं.

हुड्डा पिता- पुत्र के थे खास

निखिल मदान की गिनती पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र हुड्डा और उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा के सबसे खासमखास में होती थी. जब भी पिता- पुत्र सोनीपत आते थे तो निखिल मदान स्वागत करने वालों में सबसे आगे होते थे. मेयर चुनाव में भुपेंद्र हुड्डा के आशीर्वाद से ही उन्हें टिकट मिली थी और हुड्डा परिवार के वोट बैंक का उन्हें सीधा लाभ मिला था.