पूरे देश में अलग-अलग धर्मों के कई त्योहार पूरे उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। उन्हीं त्योहारों में एक त्योहार है बकरीद का, जिसके इस्लाम धर्म मानने वाले पूरे देश में मनाते हैं। इस दौरान बाजार में रौनक बढ़ जाती है। बकरीद के दिन को कुर्बानी के दिन के रूप में याद किया जाता है। इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार हर व्यक्ति अपने सबसे करीबी की कुर्बानी देता है और इसे ईद-उल-जुहा (Eid al-Adha) के नाम से भी जाना जाता है।
19 जुलाई को मनाई जाएगी बकरीद का ऐसा है महत्व
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक कुर्बानी का त्यौहार बकरीद रमजान के दो महीने बाद आता हैं। इस वर्ष बकरीद 19 जुलाई को मनाई जाएगी। इस्लाम धर्म में बकरीद के दिन आमतौर पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है। बकरीद के दिन बकरे को अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं, इस धार्मिक प्रक्रिया को फर्ज-ए-कुर्बान कहा जाता हैं।
बकरीद मनाने के पीछे का इतिहास (Bakrid festival History)
बकरीद पर्व मनाने के पीछे कुछ ऐतिहासिक किंवदंती भी है। इसके अनुसार हजरत इब्राहिम को अल्लाह का बंदा माना जाता हैं, जिनकी इबादत पैगम्बर के तौर पर की जाती है, जिन्हें इस्लाम मानने वाले हर अनुयायी अल्लाह का दर्जा प्राप्त है। एक बार खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब का इम्तिहान लेने के लिए आदेश दिया कि हजरत अपनी सबसे अजीज की कुर्बानी देंगे, तभी वे खुश होंगे। हजरत के लिए सबसे अजीज उनका बेटा हजरत इस्माइल था, जिसकी कुर्बानी के लिए वे तैयार हो गए।
जब कुर्बानी का समय आया तो हजरत इब्राहिम ने अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे की कुर्बानी दी, लेकिन जब आँखों पर से पट्टी हटाई तो बेटा सुरक्षित था। उसकी जगह इब्राहीम के अजीज बकरे की कुर्बानी अल्लाह ने कुबूल की। हजरत इब्राहिम की इस कुर्बानी से खुश होकर अल्लाह ने बच्चे इस्माइल की जान बक्श दी और उसकी जगह बकरे की कुर्बानी को कुबूल किया गया। तभी से बकरीद को बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है।