शनिदेव को शनिवार के दिन का अधिष्ठाता माना गया है. न्याय के देवता शनि को स्वभाव से काफी क्रूर माना जाता है. मान्यता है कि शनिदेव हर किसी को उसके कर्मों के हिसाब से फल देते हैं, इसलिए उन्हें कर्मफलदाता भी कहा जाता है. कहते हैं कि हर व्यक्ति पर कभी न कभी शनिदेव की वक्र दृष्टि जरूर पड़ती है. अगर आपके कर्म शुभ हुए तो ये दृष्टि आपका कुछ नहीं बिगाड़ती. लेकिन दुराचारी लोगों के लिए इस दृष्टि के प्रभाव को सह पाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान होता है और पूरी तरह बर्बाद हो जाता है.
ऐसे व्यक्ति को अर्श से फर्श पर आते देर नहीं लगती. इसे ही शनि का प्रकोप कहा जाता है. अगर आपके जीवन में भी शनि से जुड़ी कोई भी समस्या है तो आपको शनिवार के दिन व्रत रखना चाहिए. यदि पूरी श्रद्धा के साथ कोई व्यक्ति शनिदेव का व्रत रखे और उनकी आराधना करे, तो शनिदेव उसके कष्टों को दूर कर देते हैं. ऐसे व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती, महादशा और शनि दोष के नकारात्मक प्रभावों को झेलना नहीं पड़ता. यहां जानिए शनिवार के दिन रखे जाने वाले इस व्रत का महत्व और विधि.
ये है व्रत विधि
अगर आप इस व्रत को रखना चाहते हैं तो किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से इस व्रत की शुरुआत करें. सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म और स्नानादि से निवृत्त होने के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा या शनि यंत्र को रखें. प्रतिमा स्थापित करने के बाद भगवान शनिदेव को पंचामृत से स्नान करवाएं और चावलों से बनाए 24 दल के कमल पर इस मूर्ति को स्थापित करें. इसके बाद शनिदेव को काला वस्त्र, काला तिल, सरसों का तेल, धूप, दीप आदि अर्पित करें. उनके सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं. शनिदेव को मीठी पूड़ी और काले उदड़ दाल की खिचड़ी का भोग लगाएं. फिर शनिदेव की कथा का पाठ करें. मंत्रों का जाप करें और आखिर में आरती करें. इसके बाद शनिदेव से अपनी गलतियों की क्षमायाचना करें.
पूजा के बाद पीपल को जल दें. पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक रखें और सात बार परिक्रमा करें. दिन भर मन में शनिदेव के नाम का स्मरण करें. पूजा के बाद किसी गरीब को भोजन कराएं एवं दक्षिणा दें. काले कुत्ते को भोजन कराएं. शाम के समय व्रत का पारण करें. व्रत पारण के समय भोजन में काली उड़द की दाल की खिचड़ी भी शामिल करें.
व्रत का महत्व
शनिदोष से मुक्ति पाने के लिए शनिवार का व्रत करना बेहद लाभकारी माना गया है. इस व्रत को रखने से साढ़ेसाती और ढैय्या के कष्टों से मुक्ति मिलती है. नौकरी और व्यापार में भी सफलता मिलती है और जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि और मान-सम्मान बना रहता है. व्यक्ति का जीवन रोग मुक्त होता है और उसकी आयु बढ़ती है. इसके अलावा कठिन परिश्रम, अनुशासन, निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है.