पृथ्वी के गर्म होने के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से या असाधारण दर से पिघल रहे हैं। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने ये दावा सोमवार को जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित अपने शोध में किया है। वैज्ञानिकों ने चेताया है हिमालय के पिघलते ग्लेशियर एशिया में लाखों लोगों के लिए जल संकट का कारण बन सकते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियर में जब 400 से 700 वर्ष पहले बड़ा विस्तार हुआ था उसे लिटिल आईस एज कहते हैं। उसकी तुलना में ग्लेशियर पिछले कुछ दशक में दस गुना अधिक तेजी के साथ बर्फ खो रहा है। यही नहीं हिमालय के ग्लेशियर दुनिया के अन्य ग्लेशियर की तुलना में तेजी के साथ सिमट रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने ये दावा लिटिल आईस एज के दौर के 14,978 ग्लेशियर के आकार के बर्फ की सतह के मॉडल का आकलन करने के बाद किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने गणना की है कि ग्लेशियर अपने क्षेत्र का 40 फीसदी भाग खो चुके हैं। इसका अर्थ है, पीक से 28 हजार किमी स्कवॉयर से ये दायरा घटकर 19,600 किमी स्कवॉयर रह गया है। इस समयकाल के दौरान ग्लेशियर ने 390 क्यूबिक किलोमीटर और 586 क्यूबिक किमी बर्फ खोई है।
लगातार बढ़ता जा रहा समुद्र का जलस्तर
शोध के सह-लेखक जोनाथन कारिविक बताते हैं कि ग्लेशियर पिघलने से दुनियाभर में समुद्र के जलस्तर में 0.92 मिमी से लेकर 1.38 मिमी तक की बढ़ोतरी हुई है।
पूर्वी क्षेत्रों में अधिक नुकसान दर्ज
वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्वी क्षेत्रों में ग्लेशियर को अधिक तेजी से नुकसान हो रहा है। इसमें पूर्वी नेपाल और उत्तरी भूटान में स्थिति नाजुक है। इसका प्रमुख कारण भौगोलिक परिस्थितियां हो सकती हैं।
हिमालय तीसरे बड़े ग्लेशियर का घर
वैज्ञानिकों ने शोध पत्र में स्पष्ट लिखा है कि हिमालयन माउंटेन रेंज दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ग्लेशियर आईस का घर है। इससे पहले अंटार्टिक और आर्कटिक का नाम आता है जिसे थर्ड-पोल की भी संज्ञा दी जाती है।