पिछले एक साल में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के प्रमुख मुस्लिम नेताओं के शामिल होने से समाजवादी पार्टी का मुस्लिम नेतृत्व मजबूत होता जा रहा है। समाजवादी पार्टी के कैबिनेट मंत्री रहे आजम खान इन दिनों जेल की सजा काट रहे हैं। साथ ही खराब स्वास्थ्य के कारण निष्क्रिय रहते हैं। उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री ने समाजवादी पार्टी की चुनौतियां बढ़ा दी हैं। ऐसे सपा को मुस्लिम चेहरे की तलाश है। सपा में शामिल होने वाले मुस्लिम नेताओं में कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी बड़े कद के नेता हैं। सलीम पांच बार सांसद रह चुके हैं और राजीव गांधी उनके मित्र हुआ करते थे।
68 वर्षीय शेरवानी बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद सपा में शामिल हो गए थे। 2009 में कांग्रेस में लौट आए। उन्होंने सपा का टिकट मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव को दिए जाने के बाद पार्टी छोड़ दी थी। यह नाराजगी सपा के लिए मुश्किल कर गयी। मुस्लिम समुदाय को बड़ा संदेश देते हुए मार्च में अलीगढ़ में हुई किसान महापंचायत समेत सपा के कई अहम कार्यक्रमों में शेरवानी को पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मंच साझा करते हुए देखा गया है। सपा ने अंसारी भाइयों में सबसे बड़े और गाजीपुर के मोहम्मदाबाद से बसपा के पूर्व विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी और उनके बेटे का पार्टी में स्वागत किया है।
बसपा सांसद अफजल अंसारी के साथ-साथ (अब पूर्व-बसपा विधायक) मुख्तार अंसारी भी सपा के हिस्सा हैं। इनका गाजीपुर और मऊ के पूर्वांचल जिलों और आसपास के क्षेत्रों में मुसलमानों पर काफी दबदबा है। सपा में शामिल होने वाले अपने-अपने जिलों में मजबूत प्रभाव वाले अन्य मुस्लिम नेताओं में सीतापुर के पूर्व बसपा सांसद कैसर जहान का भी नाम शामिल हैं। समाजवादी पार्टी को अब इन मुस्लिम नेताओं से आने वाले विधानसभा चुनाव में काफी उम्मीद है। माना जा रहा है कि पार्टी मुस्लिम चेहरों का भी दांव चलेगी।