पिछले 10 सालों की कठिन मेहनत का परिणाम वैज्ञानिकों को मिलता दिख रहा है। वैज्ञानिकों ने दुनिया का सबसे बड़ा चुम्बक तैयार किया है, यह इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर का हिस्सा है, इसका मकसद पृथ्वी पर सूरज के स्तर की एनर्जी का निर्माण करना है।
मौजूदा दौर में बिजली हमारे जरूरी संसाधनों में से एक हो गया है। इसके बिना हम जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं। रेसीडेंटल लेवल से लेकर बिजनेस लेवल तक इसका इस्तेमाल दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहा है।
जहां एक तरफ इस बिजली से जीवन बहुत आसान हो जाता है, वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण को इससे बहुत नुकसान भी होता है। इस चीज को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक क्लीन एनर्जी के लिए एक विशेष उपकरण रेडी कर रहे हैं। यह विशेष उपकरण धरती पर ही सूरज जैसी ऊर्जा उत्पन्न करेगा। इससे आने वाले समय में काफी चेंजेस होंगे। यह प्रोजेक्ट इतना बड़ा है कि इसे कोई एक मुल्क नहीं बल्कि 35 देश आपस में मिलकर कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट पर पिछले दस सालों से काम चल रहा है। वैज्ञानिक एक खास चुंबक बनाने में लगे हुए हैं। यह विशालकाय मशीन आईटीईआर (इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर) का हिस्सा होगा।
वैज्ञानिकों ने इस मैग्नेट का नाम सेंट्रल सोलेनॉयड रखा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस मैग्नेट द्वारा प्लाज्मा में पॉवरफूल करंट प्रवाहित किया जाएगा। इससे फ्यूजन रिएक्शन को कंट्रोल करने में और शेप देने में हेल्प मिलेगी। ऐसा करने से एक क्लीन एनर्जी (स्वच्छ ऊर्जा) का निर्माण होगा। इसकी ताकत भी बहुत विशाल होगी। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन प्लाज्मा को 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जा सकता है।
यह तापमान सूरज के भीतरी भाग से 10 गुना ज्यादा गर्म है। इस ड्रीम प्रोजेक्ट को हकीकत में बदलने के लिए भारत, चीन, जापान, कोरिया, रूस, यूके, अमेरिका और स्विट्जरलैंड समेत 35 देश मदद कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट की सबसे आकर्षक बात ये है कि इस मशीन को चलाने से न तो कार्बन डाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन जैसी कोई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित होगी और न ही कोई रेडियोएक्टिव कचरा निकलेगा। इस चीज से पर्यावरण को काफी हद तक लाभ मिलेगा। इससे प्रदूषण तो कम होगा ही साथ ही एक स्वस्छ ऊर्जा बनाई जा सकेगी। बस यही वजह है कि इस मशीन की इतनी विशेषताओं को देखते हुए इसकी तुलना पृथ्वी के सूरज से की जा रही है। वैज्ञानिक इसे धरती का सूरज कह रहे हैं।