हिंदू मान्यता के अनुसार वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) का बहुत ही खास महत्त्व है। महिलाएं इस व्रत को श्रद्धा से रखती हैं। प्रत्येक वर्ष के ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को यह व्रत रखा जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं। पौराणिक कथा मानें तो सावित्री देवी ने अपने पति सत्यवान की आत्मा को अपने तपोबल से यमराज से वापस ले लिया था। यह घटना ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को हुई थी इसी कारण हर साल इसी दिन यह व्रत रखा जाता है। इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि विधान से की जाती है। इस पूजा के लिए इन चीजों की आवश्यकता पड़ती है इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। हम आपको बताते हैं इन चीजों के बारे में।
वट वृक्ष: वट सावित्री वृक्ष पूजा के लिए बरगद का वृक्ष होना बेहद आवश्यक है। पौराणिक कथाओं की मानें तो वट वृक्ष ने अपनी जटाओं से सावित्री के पति सत्यवान की मृत शरीर को घेर रखा था। जिससे जंगली जानवर उनके शरीर को कोई हानि न पहुंचा पायें। यही कारण है कि वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
चना: पौराणिक कथाओं की मानें तो यमराज ने सावित्री को उनके पति की आत्मा को चने के रूप में लौटाया था। इसी वजह से इस व्रत पूजा में प्रसाद के रूप में चना रखा जाता है।
कच्चा सूत: पौराणिक कथाओं के अनुसार सावित्री ने वट वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर अपने पति की शरीर को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की थी। इस कारण व्रत में कच्चा सूत जरूरी है।
सिंदूर: सिंदूर को हिंदू धर्म में सुहाग का प्रतीक माना गया है। सुहागिन महिलायें इस दिन सिंदूर को वट वृक्ष में लगाती हैं। उसके बाद उसी सिंदूर से अपनी मांग भरकर अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु का वरदान मांगती हैं।
बांस का पंखा: ज्येष्ठ माह में गर्मी बहुत होती है। वट वृक्ष को अपना पति मानकर महिलाएं उसे बांस के पंखे से हवा करती हैं। माना जाता है कि सत्यवान लकड़ी काटते वक्त अचेत अवस्था में गिरे थे तो सावित्री ने उन्हें बांस के पंखे से हवा दी थी। इसी कारण इस व्रत में बांस के पंखे की आवश्यकता होती है।