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पुलवामा आतंकी हमला: भारतीय सेना में शहीद की पत्नी, संभालेंगी लेफ्टिनेंट की भूमिका

देहरादून. उत्तराखंड की राजधानी के परिवार से ताल्लुक रखने वाले मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल दो साल पहले पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद हो गए थे, लेकिन उनकी सेवा का जज़्बा शहीद नहीं हुआ था. उसे जज़्बे को उनकी पत्नी निकिता ने बरकरार रखा है, जो आगामी 29 मई को भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट की भूमिका संभालने जा रही हैं. पिछले साल इलाहाबाद में वीमन एंट्री स्कीम का एग्ज़ाम पास करने वाली निकिता की कहानी एक मिसाल की तरह सामने आई है.

याद दिला दें जब 17 फरवरी 2019 को आतंकी हमले में उनकी जान गई थी. 20 घंटे तक चली गोलीबारी में तीन जवान शहीद हुए थे, उनमें 55 आरआर में पोस्टेड 35 वर्षीय विभूति भी एक थे. विभूति का शव जब तिरंगे में लपेटकर देहरादून लाया गया था, तो अंतिम दर्शन के लिए भीड़ लग गई थी, लेकिन तब निकिता ने सैल्यूट कर अपने पति को अंतिम विदाई दी थी और सबसे कहा था कि वो विभूति के साहस से प्रेरणा लें. श्रद्धांजलि का यह मेरा तरीका : पति के नक्शे कदम पर चलते हुए निकिता ने सेना में सेवा करने का मन बना लिया था. निकिता ने तब कहा था कि विभु की राह पर चलना, उनके अधूरे काम को पूरा करना मेरा काम है और इसी तरह मैं उन्हें श्रद्धांजलि देना चाहती हूं. इलाहाबाद से इम्तिहान पास करने के बाद वो पिछले साल से ही चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में ट्रेनिंग ले रही थीं.

पिता ही देखेंगे भावुक क्षण : अब निकिता की ट्रेनिंग तकरीबन पूरी होने के बाद वह अफसर के तौर पर सेना का हिस्सा बनने जा रही हैं. लेफ्टिनेंट कर्नल विकास नौटियाल के हवाले से कहा गया है कि 29 मई को निकिता ट्रेनिंग से पास आउट होंगी. चूंकि कोरोना काल है इसलिए पासिंग आउट कार्यक्रम में केवल निकिता के पिता ही शामिल हो सकेंगे. अन्य परिजन निकिता के जीवन के इस भावुक क्षण में करीब से शरीक नहीं हो सकेंगे, लेकिन निकिता का कहना है कि वो पासआउट होने के बाद 21 दिनों की छुट्टी पर परिवार के साथ वक्त बिताएंगी. इस दौरान यदि उत्तराखंड में कोविड संक्रमण के हालात काबू में रहे तो वह देहरादून भी जाएंगी, नहीं तो अपने पिता के पास फरीदाबाद ही रहेंगी.

प्रेम कहानी, जो बनती है प्रेरणा : विभूति जब एमबीए कर रहे थे तब निकिता की मुलाकात उनसे हुई थी. दोनों की शादी के नौ महीने बाद ही विभूति शहीद हुए लेकिन निकिता ने उन्हें कभी खुद से दूर महसूस नहीं किया. विभु की यादों और शब्दों से ही प्रेरित होकर निकिता ने नोएडा बेस्ड मल्टीनेशनल कंपनी का जॉब छोड़कर सेना में जाने की ठानी. ताकि विभु को मुझ पर गर्व हो. यह कहने वाली ​निकिता ने कहा था पहले तो मुझे खुद को यह यकीन दिलाना पड़ा था कि हो क्या गया! विभु प्रोग्रेसिव थे, वो मुझे खुद से भी आगे देखना चाहते थे इसलिए सेना में जाने के कठिन फैसले के समय जब कभी चिंता ने घेरा तो विभु की यादों ने संभाला. सेना जॉइन करने के मेरे निर्णय की वजह विभु ही रहे. अंतिम संस्कार से पहले विभु के कान में आई लव यू कहने वाली निकिता ने वह कर दिखाया है, जिससे मेजर विभूति ही नहीं, सभी को वाकई उन पर गर्व हो.