मनुष्यों की उत्पत्ति के साथ दुनिया के सृजन और विनाश को लेकर मौजूद कई अवधारणाओं के बीच अक्सर ये सवाल उठता रहा है कि धरती या फिर इंसानों का अंत कब होगा. हिंदू मान्यताओं के अनुसार जीवन की रचना और अंत ईश्वर के हाथ है. भगवान विष्णु ने खुद समय समय पर अवतार लेकर धरती और मानव जाति का उद्धार किया है. हर धर्म में इसकी अलग अलग व्याख्या की गई है. आज के युग में विज्ञान (Science) की प्रधानता है इस नजरिए से दुनिया के कई वैज्ञानिक इंसानों और दुनिया के खात्मे को लेकर कई दावे कर चुके हैं. फिल्मों और दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं के हवाले से भी धरती के विनाश के समय को लेकर कुछ न कुछ चर्चा हमेशा से होती रही है.
भविष्य को लेकर बड़ा सवाल
दरअसल यहां पर ये चर्चा इसलिए क्योंकि हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) के प्रोफेसर और साइंटिस्ट एवी लोएब (Avi Loeb) ने वैज्ञानिकों से ये सवाल पूछा था कि आखिरकार दुनिया कब तक रहेगी? धरती के खत्म होने या इंसानों के खत्म होने की तारीख क्या होगी? इसी के साथ उन्होंने अपील की है कि वो सभी मिलकर जलवायु परिवर्तन (Global Warming) को रोकने के लिए काम करें. वैक्सीन (Vaccine) बनाएं और इसी के साथ सतत ऊर्जा के स्वच्छ विकल्प खोजें.
‘अंतरिक्ष में स्पर्म बैंक की तैयारी’
प्रोफेसर ने कहा कि अभी बहुत सारे काम बाकी हैं. सभी को पौस्टिक भोजन खाना मिले इसका तरीका निकाले. अंतरिक्ष में बड़े बेस स्टेशन बनाने की तैयारी कर लें. साथ ही एलियंस से संपर्क करने की कोशिश करें. क्योंकि जिस दिन हम तकनीकी रूप से पूरी तरह मैच्योर हो जाएंगे, उस दिन से इंसानों की पूरी पीढ़ी और धरती नष्ट होने के लिए तैयार हो जाएगी. गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों में दुनिया के बड़े वैज्ञानिक अंतरिक्ष में स्पर्म बैंक बनाने पर जोर दे रहे हैं. इस दिशा में काम शुरू हो चुका है. ऐसे ही मिशन के तहत प्रोफेसर लोएब का कहना है कि धरती के विनाश के समय हमारी यही सब खोजें और तकनीकी विकास उस समय मौजूद कुछ इंसानों को बचा पाएंगी.
इंसानों की उम्र बढ़ाना जरूरी’
प्रोफेसर लोएब ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) के पूर्व छात्रों को संबोधित करते हुए एक मैथमैटिकल कैलकुलेशन के आधार पर कहा, ‘फिलहाल सबसे ज्यादा जरूरी है कि इंसानों की उम्र को बढ़ाया जाये. क्योंकि मुझसे कई बार पूछा जा चुका है कि आखिर हमारी तकनीकी सभ्यता कितने वर्षों तक जीवित रहेगी. ऐसे में मेरा जवाब है कि हम लोग अपने जीवन के मध्य हिस्से में है. यह धरती लाखों साल तक भी बची रह सकती है या इंसान कुछ सदियों तक जीवित रह सकता है लेकिन इससे ज्यादा नहीं. लेकिन क्या यह भविष्य बदला जा सकता है?’
‘महामारी और युद्ध की भूमिका’
एवी लोएब ने कहा कि जिस तरह से धरती की हालत इंसानों की वजह से खराब हो रही है, उससे लगता है कि इंसान ज्यादा दिन धरती पर रह नहीं पाएंगे. कुछ ही सदियों में धरती की हालत इतनी खराब हो जाएगी कि लोगों को स्पेस में जाकर रहना पड़ेगा. सबसे बड़ा खतरा तकनीकी आपदा (Technological Catastrophe) का है. वहीं इसके अलावा दो बड़े खतरे हैं इंसानों द्वारा विकसित महामारी और देशों के बीच युद्ध. इन सबको लेकर सकारात्मक रूप से काम नहीं किया गया तो इंसानों को धरती खुद खत्म कर देगी या फिर वह अपने आप को नष्ट कर देगी. लोएब ने कहा कि अलग-अलग देशों का मौसम लगातार अप्रत्याशित रूप से बदल रहा है. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है. सैकड़ों सालों से सोए हुए ज्वालामुखी फिर से आग उगलने लगे हैं. धरती पर ऑक्सीजन के सोर्स जैसे अमेजन के जंगल और अन्य अहम हिस्से आग से खाक हो रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया की आग कैसे कोई भूल सकता है. करोड़ों जीव जंतु उस में खाक हो गए.
‘बंद हो प्रकति से खिलवाड़’
सीनियर साइंटिस्ट और प्रोफेसर ने कहा कि फिजिक्स का साधारण मॉडल कहता है कि हम सब एलिमेंट्री पार्टिकल्स यानी मूल तत्वों से बने हैं. इनमें अलग से कुछ नहीं जोड़ा गया है. इसलिए प्रकृति के नियमों के आधार पर हमें मौलिक स्तर पर इनसे छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है. अगर इनसे छेड़छाड़ यूं ही जारी रहेगी तो आखिरकार इससे सभी का सामूहिक नुकसान होगा. इसलिए इंसान और उनकी जटिल शारीरिक संरचना को लेकर निजी तौर पर किसी भी आपदा की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है.