विस्तारवाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) के मन में क्या चल रहा है? क्या चीन (China) कुछ बड़ा करने की तैयारी में है? क्या इसमें भारत के लिए भी कोई टेंशन की बात है? चीन के कल के एक कदम से यह सारे सवाल उठने लगे. दरअसल चीन ने बुधवार को अपना रक्षा बजट 7.2% बढ़ाने का ऐलान किया. जिससे उसका सालाना सैन्य खर्च बढ़कर 245 अरब डॉलर पर पहुंच गया. यह बढ़ोतरी चीन की सैन्य ताकत को स्थल, वायु, समुद्र, परमाणु, अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्रों में तेज़ी से मजबूत करने के लिए की गई है. चीन का सैन्य खर्च भारत के 79 अरब डॉलर के रक्षा बजट से तीन गुना अधिक है और यह अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट है. अमेरिका इस साल 900 अरब डॉलर से अधिक अपनी सेना पर खर्च करेगा.
चीन का यह कदम ऐसे समय आया है, जब एक दिन पहले ही उसने अमेरिका को चेतावनी दी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर दोगुना टैरिफ लगाने का ऐलान किया तो मानो इससे ड्रैगन को आग ही लग गई. चीन ने पहले अमेरिका को दो टूक कहा कि अगर अमेरिका जंग चाहता है तो वह भी अंत तक लड़ने के लिए तैयार है. वैसे यह भारत के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि चीन की सैन्य और आर्थिक नीतियों का सीधा असर भारत की सुरक्षा, व्यापार और कूटनीति पर पड़ता है.
चीन की ट्रेड वॉर पर चेतावनी और फिर रक्षा बजट में बढ़ोतरी से यह साफ संकेत मिलता है कि जिनपिंग, अमेरिका को यह बताना चाहते हैं कि वह सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि सैन्य ताकत के मामले में भी मुकाबले के लिए तैयार हैं.
इंडो-पैसिफिक में बढ़ती सैन्य पकड़
चीन लंबे समय से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है. वह ताइवान, दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत कर रहा है.
ताइवान को घेरने की तैयारी: चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और अमेरिका को स्पष्ट चेतावनी दे चुका है कि वह किसी भी तरह के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा.
नौसेना का विस्तार: चीन के पास 370 से अधिक युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना बनाती हैं. हालांकि, तकनीकी रूप से यह अभी अमेरिका से पीछे है, लेकिन शी जिनपिंग इसे तेजी से अपग्रेड कर रहे हैं. इसका असर भारत पर भी पड़ेगा, क्योंकि चीन हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए पाकिस्तान को नौसेना सहयोग दे रहा है.
भारत के सामने चीन की चुनौती?
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘भारत को अपनी रक्षा बजट को 2.5% GDP तक बढ़ाना चाहिए, जो फिलहाल सिर्फ 1.9% है, ताकि चीन और पाकिस्तान दोनों के खिलाफ एक विश्वसनीय प्रतिरोध क्षमता विकसित की जा सके. भारतीय सेना में कई संचालनगत खामियां हैं, जिन्हें तत्काल दूर करने की आवश्यकता है.’
भारत की 14 लाख से अधिक सैनिकों वाली सेना के लिए वेतन और पेंशन पर भारी खर्च होता है. इसके कारण, रक्षा बजट का केवल 25% ही सैन्य आधुनिकीकरण के लिए बचता है, जिससे कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर भारत को कमी झेलनी पड़ती है. इनमें लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां, हेलीकॉप्टर, उन्नत वायु रक्षा मिसाइलें, टैंक-रोधी मिसाइलें और नाइट-फाइटिंग क्षमताएं शामिल हैं.
भारतीय वायुसेना (IAF) की हालत खास तौर से चिंताजनक है. वायुसेना के पास सिर्फ 30 लड़ाकू स्क्वाड्रन (प्रत्येक में 16-18 विमान) हैं, जबकि अनुमोदित क्षमता कम से कम 42.5 स्क्वाड्रन की है. भारत अभी भी स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमानों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए संघर्ष कर रहा है.
इसके उलट, चीन पहले ही अपने 5वीं पीढ़ी के जे-20 स्टील्थ फाइटर जेट्स को भारतीय सीमा के पास तैनात कर चुका है और अब वह 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का भी प्रदर्शन कर रहा है. इसके अलावा, चीन पाकिस्तान को कम से कम 40 J-35A फाइटर जेट देने की योजना बना रहा है, जिससे भारत को दो मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
परमाणु और समुद्री शक्ति का संतुलन
परमाणु क्षेत्र में, चीन अब दुनिया में सबसे तेज़ी से परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ाने वाला देश बन चुका है. चीन के पास वर्तमान में 600 से अधिक ऑपरेशनल परमाणु हथियार हैं, और 2035 तक यह संख्या 1,000 से अधिक हो सकती है.
भारत और पाकिस्तान दोनों के पास लगभग 160-170 परमाणु हथियार हैं, लेकिन चीन पाकिस्तान को सैन्य सहायता देकर भारत पर दबाव बनाने की रणनीति अपना रहा है. चीन के पास अब 370 से अधिक युद्धपोतों और पनडुब्बियों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना भी है, हालांकि यह तकनीकी रूप से अमेरिका के मुकाबले कमजोर हो सकती है.
चीन-पाकिस्तान सैन्य गठजोड़
जमीन पर सहयोग बढ़ाने के बाद चीन अब पाकिस्तान को एक मजबूत नौसेना बनाने में मदद कर रहा है. दोनों देशों के बीच नियमित ‘Sea Guardian’ सैन्य अभ्यास हो रहे हैं, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री सुरक्षा को खतरा बढ़ सकता है.
भारत को क्या करना चाहिए?
चीन की आक्रामक सैन्य विस्तार नीति और पाकिस्तान के साथ उसके बढ़ते सहयोग को देखते हुए, भारत को अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी करने की सख्त जरूरत है. रक्षा आधुनिकीकरण के लिए समुचित निवेश के बिना, भारत को दो मोर्चों (चीन और पाकिस्तान) पर सैन्य चुनौतियों का सामना करना मुश्किल हो सकता है. टेक्नोलॉजी, सैन्य उपकरणों और परमाणु क्षमता के क्षेत्र में चीन से प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को अपने रक्षा बजट को जीडीपी के 1.9% हिस्से से बढ़ाकर 2.5% तक ले जाना होगा.
भारत के पास एक सक्षम और शक्तिशाली सेना है, लेकिन आधुनिक सैन्य उपकरणों और उच्च तकनीक आधारित हथियारों में निवेश किए बिना, चीन और पाकिस्तान के संयुक्त खतरे का सामना करना कठिन हो सकता है. इसके अलावा, भारत को QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ अपने रक्षा सहयोग को और मजबूत करना होगा ताकि इंडो-पैसिफिक में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके.