जी-20 सम्मेलन (G-20 Summit) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) की मुलाकात से रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने की उम्मीद है। जून 2020 में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुए टकराव के बाद दोनों राष्ट्राध्यक्षों की पहली बार मुलाकात हुई है। इस मुलाकात को राजनयिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में पूर्वी लद्दाख में तनाव (Tension in East Ladakh) खत्म करने का रास्ता साफ होगा।
बाली में मंगलवार को मोदी और जिनपिंग के बीच उस समय मुलाकात हुई जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति द्वारा डिनर का आयोजन रखा गया था। डिनर खत्म होने के बाद मोदी और जिनपिंग का आमना-सामना हुआ। इस दौरान दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया और कुछ समय तक शिष्टाचार बातें की। करीब दो साल से भी अधिक समय के बाद दोनों नेताओं के बीच बात हुई। इससे पहले सितंबर में एससीओ की बैठक के दौरान दोनों नेताओं में बातचीत की अटकलें लगाई जा रही थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां तक कि दोनों में अभिवादन का आदान-प्रदान भी नहीं हुआ।
लेफ्टनेंट जनरल संजय कुलकर्णी ने कहा कि यह मुलाकात दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने में निर्णायक साबित होगी। अभी मुलाकात हुई है तो आगे बात भी होगी। कुलकर्णी के अनुसार, यह मुलाकात कई मायने में महत्वपूर्ण है। दरअसल, भारत जी-20 का अध्यक्ष बनने जा रहा है। ऐसे में हर सदस्य राष्ट्र को निमंत्रण देना उसकी जिम्मेदारी बनती है। हो सकता है मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री ने जिनपिंग को अगले जी-20 सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण भी दिया हो।
दूसरे, आज तनाव कम करना चीन के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना भारत के लिए। रूस-यूक्रेन युद्ध के आलोक में यह ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस युद्ध के प्रभाव पूरी दुनिया के सामने किसी न किसी रूप में आ रहे हैं। ताइवान को लेकर पिछले दिनों हुई गर्मागर्मी के बावजूद जिनपिंग का अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मिलना और अब मोदी से गर्मजोशी से हाथ मिलाना दर्शाता है कि चीन वैश्विक राजनीतिक में अलग-थलग नहीं पड़ना चाहता है।
जानकारों का यह भी मानना है कि जिस प्रकार रूस-यूक्रेन युद्ध के भारत ने इस मामले में जबरदस्त सामंजस्य बिठाकर रूस एवं अमेरिका दोनों के साथ अपने संबंधों को जस का तस बरकरार रखा और वह मध्यस्थता को लेकर उसकी भूमिका की चर्चा होने लगी, उसे चीन दुनिया में अलग-थलग दिखने लगा था। इसलिए चीन पर भी भारत से संबंधों में सुधारने का दबाव है।
इस मुलाकात को लेकर हालांकि विदेश मंत्रालय की तरफ से ज्यादा कुछ नहीं कहा गया है लेकिन अब इन संभावनाओं को बल मिल रहा है कि बुधवार को मोदी और जिनपिंग के बीच औपचारिक बातचीत भी हो सकती है।
संजय कुलकर्णी कहते हैं कि अभी बात हो या नहीं लेकिन इससे आगे के लिए रास्ता खुल गया है। दूसरे इससे सैन्य नेतृत्व में भी संदेश जाता है कि टकराव को कम करने के प्रयास तत्काल किए जाने चाहिए। पूर्वी लद्धाख में कायम गतिरोध को दूर करने में आने वाले दिनों में प्रगति होगी।