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देवबंद : रामलीला में मेघनाथ, लक्ष्मण महायुद्ध, लक्ष्मण शक्ति का मंचन किया गया

रिपोर्ट- गौरव सिंघल,विशेष संवाददाता,दैनिक संवाद,सहारनपुर मंडल,उप्र:।।

देवबंद (दैनिक संवाद न्यूज)। श्री विष्णु कला मंडल द्वारा रामलीला भवन पर आयोजित रामलीला में रावण को जब पता चलता है कि श्रीराम सेना राम सेतु बनाकर आ गए है और युद्ध के लिए चढ़ाई कर दी है तब रावण अपने ज्येष्ठ पुत्र मेघनाथ को युद्ध के लिए भेजता है। तब मेघनाथ युद्ध में अपना पराकर्म दिखाता है और अंगद, विभीक्षण सबको हरा देता है और जब राम जी को ये पता चलता है तब राम जी से लक्ष्मण जी युद्ध में जाने की आज्ञा मांगते है। राम जी उनको जाने की आज्ञा दे देते है, और युद्ध में आकर लक्ष्मण जी मेघनाथ को युद्ध के लिए ललकारते है।
तब मेघनाथ और लक्ष्मण में एक भयानक युद्ध होता है मेघनाथ, लक्ष्मण जी को जान बचाने जाने के लिए कहता है तब लक्ष्मण जी  मेघनाथ को उसकी राम जी के महिमा के बारे में बताते है और उसको मृत्यु के मुंह में जाने से बचने को कहता है परंतु मेघनाथ नहीं मानता और दोनो के बीच एक भयानक युद्ध होता है और लक्ष्मण जी से जब युद्ध में अपने को हारता देखता है तब मेघनाथ अपनी जान बचाने के लिए ब्रह्मशक्ति चलता है और लक्ष्मण जी को मूर्छित कर देता है और वहा से चला जाता है। लक्ष्मण को मूर्छित देख हनुमान जी विलाप करते हुए उनको उठाकर रामा दल ले जाते है। राम जी लक्ष्मण जी को मूर्छित देखकर विलाप करते हुए कहते है की अब मैं अयोध्या कैसे जाऊंगा। सीता भी नहीं है और अब तू भी जा रहा है भाई, उन्हें बिलखते देखकर विभीषण जी बताते है की लंका में एक सुसैन वैध है उन्हे इसका उपचार पता होगा। तब श्री राम जी हनुमान जी को आज्ञा देते है कि वह लंका में जाकर उस वैध को ले आए।
राजा जी की आज्ञा पाकर हनुमान जी लंका से सुसैन वैध को उठाकर ले आते है और श्री राम जी वैध से लक्ष्मण जी का उपचार पूछते है तब वैध जी बताते है कि इस शक्ति की मूर्छा हटाने के लिए संजीवनी बूटी की आवश्यकता है और वह द्रोडाचल पर्वत पर मिलती है। तब हनुमान जी बूटी लाने के लिए श्री राम जी से आज्ञा मांगते है और वैध जी से बूटी की पहचान पूछते है तब वैध जी बताते है की वह काफी चमकती है। हनुमान जी बूटी लेने जा रहे है यह खबर रावण को पता चलती है तब रावण कालनेमी राक्षस को बुलाता है और हनुमान का मार्ग सूर्य उदय तक रुकने का आदेश देता है। आदेश पाकर कालनेमी अपने कार्य में लग जाता है और हनुमान जी के बीच मार्ग पर एक महात्मा का रूप बनाता है और हनुमान जी को रोकता है और हनुमान जी को रोक देता है और राम जी कैसे युद्ध जीत रहे है इसकी झूठी लीला रचता है और हनुमान जी को नदी से जल लाने को भेजता है जब हनुमान जी नदी में जल लेने उतरते है तब एक जानवर उनका पैर पकड़ लेता है।
हनुमान जी अपनी जान बचाने के लिए उसका वध कर देते है और उस कन्या को उसके श्राप से मुक्त कर देते है। तब वह हनुमान जी को बताती है कि यह कोई ऋषि नहीं बल्कि एक राक्षस है जो आपको यह पर सूर्य उदय होने तक रोकने के लिए आया है। यह सुनकर हनुमान जी ऋषि को उसकी दक्षिणा देते है जिसमें वह उसका वध कर देते है और पर्वत की ओर निकलते है तथा सूर्यदेव को बोलते है कि वह लक्ष्मण की मूर्छा खुलने से पहले उदय ना हो जाए नहीं तो वही बचपन वाला क्रम होगा। आप को मुख में छिपालूंगा और जब तक मूर्छा नहीं खुलेगी तब तक नहीं बंधन मुक्त होगा। यह कहकर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर जाते है और जब हनुमान जी अयोध्या के ऊपर से जाते है तब नीचे से भरत जी उन्हें देखते है और सोचते है की यह वानर इस पर्वत को राम जी के ऊपर ही फेंकने जा रहा है और उनको तीर मारकर नीचे गिरा देता है। गिरते हुए हनुमान जी के मुख से राम नाम सुनकर भरत चौक जाते है और हनुमान जी से राम जी के बारे में की आप उनको कैसे जानते है पूछते है। हनुमान जी उनको सारा वर्तन्त सुनते हैं तब भरत जी हनुमान जी को शीघ्र भेजने के लिए वायु अस्त्र का उपयोग करते है। इधर रामा दल में हनुमान जी का इंतजार होता है। हनुमान जी जब आते है तो तब सुसैन वैध जी उस पर्वत पर से संजीवनी बूटी लेकर लक्ष्मण जी के प्राण बचा लेते है और लक्ष्मण जी की मूर्छा खुल जाती है।