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हाई कोर्ट ने अपराधियों को राजनीति से बाहर करने के लिए प्रभावी कदम उठाने को कहा

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कहा है कि संसद और भारत निर्वाचन आयोग को राजनीति से अपराधियों को बाहर करने के लिए समुचित कदम उठाने चाहिए। राजनेताओं, अपराधियों और नौकरशाहों के बीच का अपवित्र गठजोड़ मिटा देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस दिशा में उचित कदम उठाने को कहा है किंतु अभी तक चुनाव आयोग और संसद ने ऐसा करने के लिए सामूहिक इच्छा शक्ति नहीं दिखाई है।

यह टिप्पणी जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने बसपा सांसद अतुल कुमार सिंह उर्फ अतुल राय की जमानत अर्जी खारिज करते हुए की। राय अपने खिलाफ दर्ज केस को वापस करने के लिए पीडि़ता और उसके गवाह पर नाजायज दबाव बनाने के आरेाप में जेल में बंद हैं। उनके दबाव के कारण पीडि़ता और उसके गवाह ने सुप्रीम कोर्ट के सामने फेसबुक पर लाइव आकर आत्महत्या का प्रयास किया था। गंभीर अवस्था में दोनों को अस्पताल में दाखिल किया गया था जहां उनकी मौत हो गई थी। इस केस में हजरतगंज थाने में सांसद राय और पूर्व आइपीएस अमिताभ ठाकुर पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

राय के केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि उनके खिलाफ कुल 23 मुकदमों का आपराधिक इतिहास है। कोर्ट ने यह भी पाया कि 2004 की लोकसभा में 24 प्रतिशत, 2009 की लोकसभा में 30 प्रतिशत, 2014 की लोकसभा में 34 प्रतिशत तो वहीं 2019 की लोकसभा में 43 प्रतिशत सदस्य आपराधिक छवि वाले हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह संसद की सामूहिक जिम्मेदारी है कि अपराधिक छवि वाले लोगों को राजनीति में आने से रोके और लोकतंत्र को बचाए। कोर्ट ने कहा कि चूंकि संसद और आयोग आवश्यक कदम नहीं उठा रहे हैं इसलिए भारत का लोकतंत्र अपराधियों, ठगों और कानून तोडऩे वालों के हाथों में सरक रहा है।

कोर्ट ने कहा कि कोई भी इस बात से इन्कार नहीं करेगा कि आज की राजनीति अपराध, ताकत और पैसे से ग्रसित है। अपराध और राजनीति का गठजोड़ लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए गंभीर खतरा है। लोकसभा, विधानसभा और यहां तक कि स्थानीय निकायों के चुनाव लडऩा बहुत ही महंगा हो गया है। कोर्ट ने कहा कि यह भी देखने में आया है कि हर चुनाव के बाद जनप्रतिनिधियों की संपत्ति में अकूत इजाफा हो जाता है।

कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि पहले बाहुबली और अपराधी चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को समर्थन प्रदान करते थे किंतु अब तो वे स्वयं राजनीति में आते हैं और पार्टियां उनको बेझिझक टिकट भी देती हैं। यह तो और भी आश्चर्यजनक है कि जनता ऐसे लोगों को जिता भी देती है। कोर्र्ट ने सिविल सोसायटी से कहा कि उन्हें जाति व धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठकर ऐसे आपराधिक छवि वाले नेताओं को नकार देना चाहिए।