यूं तो भारत के लगभग हरेक फल को अच्छे स्वास्थ्य और बीमारी से दूर रखने के लिए खाने का मशविरा सदियों से दिया जाता रहा है, मगर आम की बहार जो लगभग मार्च-अप्रैल में शुरू होती है, इसका रास्ता सालभर पहले से ही बुहारा जाने लगता है। यह बात थोड़ी-सी उस ख्याल से मिलती-जुलती है कि हर दिन हम रात ढलने के साथ सूरज उगने का इंतजार करते हैं। आम के रस और स्वाद में पौष्टिकता, शुद्धता, स्वाद और विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो इसे सूर्य की किरण के समान गुणकारी बनाता है।
तोहफा है यह देश का
रामायण-महाभारत में भी आम के उपवनों का जिक्र है। आम भारत, पाकिस्तान तथा फिलीपींस का राष्ट्रीय फल है। भारत आम के उत्पादन में पहले स्थान पर है। वास्तव में विश्व को आम का उपहार भारत ने ही दिया। इस फल का जुड़ाव हमारी संस्कृति से इस कदर जुड़ा है कि उत्सवों तथा घरों में आम की पत्तियों के बंदनवार, कलश पर आम के पत्तों से सजावट लगाई जाती है। समय के साथ आम की खेती अफ्रीका, ब्राजील, बरमूडा, वेस्टइंडीज तथा मैक्सिको तक पहुंची।
जायके के ढेरों इंतजाम
दुनियाभर में 1500 के करीब आम की किस्में हैं, जिनमें से 100 किस्में भारत में उगाई जाती हैं। अपने औषधीय गुणों में अव्वल आम में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा शर्करा पर्याप्त मात्रा में होते हैं। पेट, हृदय, त्वचा, आंखों के लिए फायदेमंद आम रक्त को शुद्ध करने और भूख बढ़ाने वाला होता है। आम रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।
हर संस्कृति में महक
आम के पेड़ से कई धार्मिक मान्यताएं जैसे राधा-कृष्ण का पौराणिक नृत्य, शिव-पार्वती का विवाह आदि भी जुड़ीं हैं। सांची स्तूपों में भी आम को लेकर कई शिल्पकारी अंकित है। आम के बारे में कुछ रोचक किस्से भी खासे मशहूर हैं। बिहार के भागलपुर जिले के धरहरा गांव में पिछले 200 वर्षो से एक परंपरा चली आ रही है कि जिसके घर लड़की पैदा हो उस परिवार को 10 आम के पेड़ लगाने होते हैं।
बादशाह को प्रिय यह राजा
सभी मुगल बादशाह आम के दीवाने थे। ‘आईने अकबरी’ में भी आम की किस्मों और उनकी खासियतों का जिक्र है। बहादुरशाह जफर ने अपने बगीचे ‘हयात बख्श’ में कुछ मशहूर आम उगाए थे। अवध के नवाब को दशहरी आम इतने पसंद थे कि जब उन्हें पता चला कि इस आम की गुठली से भी पेड़ उगाया जा सकता है तो उन्होंने एक नियम बना दिया कि जब भी किसी को आम खाने दिया जाए तो उसकी गुठली में छेद करना अनिवार्य होगा ताकि दूसरी जगह पर इस जैसे स्वाद वाला कोई पेड़ न उगा ले।
खास नाम के अनोखे आम
आम पर कई शायरों तथा कवियों ने भी अपनी जादूगरी दिखाई है। अकबर इलाहाबादी का एक शेर है ‘नाम न कोई यार को पैगाम भेजिए, इस फसल में जो भेजिए, बस आम ही भेजिए।’ वहीं मुनव्वर राणा ने भी आम की दीवानगी को कुछ इस तरह कहा है कि ‘इंसान के हाथों की बनाई नहीं खाते, हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते।’ सिर्फ किताबों में ही नहीं तमाम रिकॉर्ड्स व सम्मान दिलाने में भी आम का जवाब नहीं। उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद में अपने आम की 300 प्रकार की किस्मों के लिए मशहूर पद्मश्री हाजी कलीमुल्लाह का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ‘नमो’ के अलावा आम की तीन नई किस्में मोहम्मद आजम खान, अमिताभ बच्चन तथा एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर उगाई हैं।
मेला लगता आम का
वैसे तो मेले हमारे मनोरंजन, ज्ञान या रुचि से संबंधित होते हैं जबकि मैंगो फेस्टिवल हमारे स्वाद के बारे में होता है। दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में लगने वाला आम मेला बहुत लोकप्रिय है। कहते हैं इस मेले में आमों की 500 से अधिक किस्मों की नुमाइश होती है। एक रोचक बात यह भी है कि किसी भी क्षेत्र विशेष के उत्पादों की पहचान को जियोग्रॉफिक इंडीकेशन सर्टिफिकेट दिया जाता है। इसी सूची में अल्फांसो आम भी शामिल है। 40 फीसदी दैनिक आहार की जरूरतों को पूरा कर सकता है आम।