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सूर्यास्त के बाद शव जलाने की क्यों है मनाही, जानिए वजह !

हिंदू धर्म में जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कार बताए गए हैं. इनमें आ‌‌खिरी यानी सोलहवां संस्कार है मृत्यु के बाद का संस्कार, जिसमें व्यक्ति की अंतिम विदाई को लेकर कुछ नियम बनाए गए हैं. इन नियमों में एक बड़ा नियम ये है कि किसी भी व्यक्ति का दाह संस्कार कभी भी सूर्यास्त के बाद नहीं किया जाना चाहिए. साथ ही अंतिम संस्कार के समय एक छेद वाले घड़े में जल लेकर अंतिम संस्कार की क्रिया करने वाला व्यक्ति चिता पर रखे शव की परिक्रमा करता है और आखिर में इस मटके को पटककर फोड़ देता है. इन संस्कारों का जिक्र गरुड़ पुराण में भी किया गया है. जानिए इसके बारे में क्या है मान्यता.

गरुड़ पुराण के अनुसार सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार को शास्त्र के विरुद्ध माना गया है, इसीलिए रात में अगर किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके शव को रोककर रखा जाता है और अगले दिन ​दाह संस्कार किया जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करने पर स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते हैं और नर्क के द्वार खुल जाते हैं. ऐसे में आत्मा को नर्क के कष्ट भोगने पड़ते हैं, साथ ही माना जाता है कि अगले जन्म में ऐसे व्यक्ति के किसी अंग में भी दोष हो सकता है.

इसके अलावा दाह संस्कार के दौरान छेद वाले घड़े से चिता की परिक्रमा करके उसे फोड़ने का भी विधान है. इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा मृत व्यक्ति के मोह भंग के लिए किया जाता है. परिक्रमा के दौरान व्यक्ति के जीवन की कहानी को प्रदर्शित किया जाता है. इसमें मनुष्य को घड़ा रूपी माना जाता है और उसमें मौजूद पानी उसका समय होता है. घड़े से टपकता एक एक बूंद पानी उसकी हर पल घटती आयु होती है और अंत में घड़ा फोड़कर शरीर समाप्त हो जाता है और शरीर में मौजूद जीवात्मा को मुक्त हो जाती है. इस रीति के जरिए शरीर और उसकी आत्मा के बीच मोह भंग किया जाता है.