भारतीय संस्कृति के प्रमुख प्रतीकों में तिलक का प्रमुख स्थान है. प्राचीन काल में जब लोग युद्ध के लिए जाया करते थे तो तिलक से अभिषेक करके उनके लिए मंगलकामनाएं की जाती थीं. वर्तमान में भी हम तमाम शुभ अवसरों और पूजा–पाठ के दौरान इस पावन तिलक को अपने माथे पर लगाते हैं. हमारे यहां इसे टीका, बिंदी, आदि के नाम से तिलक को जाना जाता है. सनातन परंपरा में बगैर माथे पर तिलक लगाए कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है. मूलत: तिलक तीन प्रकार का होता है.एक रेखाकृति तिलक, द्विरेखा कृति तिलक और त्रिरेखाकृति तिलक.इन तीनों प्रकार के तिलकर के लिए चंदन, केशर, गोरोचन और कस्तूरी का प्रयोग किया जाता है.जिनमें कस्तूरी का तिलक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.
दिन के हिसाब से लगाएं तिलक
प्रत्येक दिन के एक देवता और ग्रह निश्चित हैं. ऐसे में देवता विशेष का आशीर्वाद पाने के लिए दिन के हिसाब से तिलक लगा सकते हैं. जैसे सोमवार का दिन भगवान शिव और चंद्रदेव को समर्पित है. इस दिन सफेद चंदन का तिलक लगाना चाहिए. मंगलवार का दिन श्री हनुमान जी और मंगल ग्रह को समर्पित है, इसलिए इस दिन लाल चंदन अथवा चमेली के तेल में सिंदूर का तिलक लगाएं. बुधवार को सूखे सिंदूर का तिलक लगाकर गणपति की कृपा प्राप्त करें. चूंकि गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति और भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए इस दिन मस्तक पर पीले चंदन या फिर हल्दी का तिलक लगाएं. शुक्रवार को लाल चंदन अथवा सिंदूर का तिलक और शनिवार के दिन भस्म का तिलक लगाएं. रविवार का दिन प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य को समर्पित है और इस दिन शुभता एवं मंगल की कामना लिए लाल चंदन का तिलक लगाएं.
मस्तक पर तिलक लगाने का लाभ
तिलक हमारे पूरे शरीर को संचालित करने का केंद्र बिंदु है. मान्यता है कि मस्तक पर लगाये जाने वाले तिलक से चित्त की एकाग्रता बढ़ती है और मस्तिष्क में पैदा होने वाले विचारों से जुड़ा तनाव दूर होता है. तिलक लगाने व्यक्ति के शरीर में एक आभा उत्पन्न होती है और यही आभा व्यक्तित्व के विकास की ओ अग्रसर करती है. धीरे–धीरे यह आभा व्यक्ति को परमानंद की ओर ले जाती है. देश में विभिन्न पंरपरा और संप्रदाय से जुड़े लोग लंबा, गोल, आड़ी तीन रेखाओं वाला आदि तरीके से तिलक लगाते हैं.