सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दुष्कर्म के मामले (rape cases) में 10 साल की सजा काट रहे व्यक्ति को बरी करते हुए कहा, शादी के वादे से मुकरने (renege on a promise to marry) का हर मामला दुष्कर्म नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने निचली अदालत व हाईकोर्ट (lower court and high court) के सजा के आदेश को खारिज कर दिया, हालांकि पीड़िता को मुआवजा देने का फैसला बरकरार रखा।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा, इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आरोपी ने पूरी गंभीरता के साथ लड़की से शादी करने का वादा किया हो। मगर, बाद में उसके सामने कुछ ऐसे अप्रत्याशित हालात पैदा हो गए हों, जिन पर उसका नियंत्रण न हो और उसे न चाहते हुए भी शादी के वादे से पीछे हटना पड़ा हो। ऐसी स्थिति में उसके वादे को झूठा मानकर उसे धारा 376 के तहत दुष्कर्म का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
पीठ ने कहा, इस मामले में रिकार्ड में लाया गया कि शिकायतकर्ता एक विवाहित महिला थी, जिसके तीन बच्चे थे। आरोपी उसके घर के सामने किराये पर रहता था। दोनों में नजदीकियां बढ़ीं और इस रिश्ते से 2011 में एक बच्चा भी पैदा हुआ।
तीन बच्चों को पति के पास छोड़कर चली गई
शिकायतकर्ता 2012 में आरोपी के गांव गई तो उसे पता चला कि वह शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं। इसके बाद भी वह अलग-अलग जगहों पर आरोपी के साथ रहती रही। उसने 2014 में आपसी सहमति से पति को तलाक दिया और तीनों बच्चों को पति के पास छोड़कर चली गई।
…बाद में शादी करने से किया इन्कार
पीठ ने कहा, बाद में कुछ विवाद हुआ तो शिकायतकर्ता ने 21 मार्च, 2015 को दुष्कर्म का मामला दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि शादी के वादे के बाद उसने आरोपी के साथ यौन संबंध बनाए, पर बाद में आरोपी ने उससे शादी करने से इन्कार कर दिया।