भारत और चीन लद्दाख सीमा पर अधिक सैनिकों को न भेजने के लिए सहमत हो गए हैं. भारत यथास्थिति बहाल करने और सीमा पर शांति के लिए सैन्य-राजनयिक रूप से से कई दौर की लंबी बातचीत के लिए तैयार है. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ये एक या दो दौर की बातचीत से होने वाला नहीं है. दोनों ही पक्षों ने सैद्धांतिक रूप से सीमा पर ज़्यादा सैनिक न भेजने को लेकर सहमति जताई है. लेकिन दोनों पक्षों के पास इस बात को सत्यापित करने के लिए के लिए कोई आधार नहीं है, क्योंकि दोनों ही पक्ष स्थानीय खुफिया माध्यम से इकट्ठी की गई जानकारी को साझा नहीं करना चाहते.
अब तक, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. वो उत्तरी पैंगोंग त्सो झील, फिंगर 4 पर मौजूद हैं. वहीं इंडियन आर्मी रेजांग ला रेचिन ला, राइडरलाइन पर मौजूद है. गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स सेक्टर में स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
कई दौर की बातचीत की ज़रूरत
चीन पर पैनी नज़र रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र में PLA की घुसपैठ को रोकने के लिए कई दौर की बातचीत की ज़रूरत है. चीन के कब्जे वाले अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश में लगातार इन्फ्रा अपग्रेड को देखते हुए लगता है कि LAC पर चीन भारत के मुकाबले तेज़ी से सैनिकों की तैनाती करता रहा है. इसका मतलब है कि जब तक राजनीतिक समझ नहीं बन जाती तब तक भारतीय सेना को अलर्ट पर रहना होगा, क्योंकि पीएलए को फिर से फायदा लेने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए.
अरुणाचल के नज़दीक भी चीनी बिल्डअप
लद्दाख के अलावा अरुणाचल के क्षेत्रों में पीएलए का बिल्डअप देखने को मिला है, जो निंगची के आस-पास केंद्रित है. ये जल्द ही ल्हासा के साथ रेलमार्ग से जुड़ने जा रहा है. चीन शिगात्से या जिगज़े से चुंगी घाटी में यतॉन्ग या यदोंग तक एक रेल सड़क का निर्माण कर रहा है. जो भारतीय क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे पर दबाव डाल सकता है. तिब्बत और शिनजियांग में चीन की तरफ से निर्माण कार्य न सिर्फ भारत पर दबाव के लिए है बल्कि कम्यूनिस्ट पार्टी के क्षेत्र में मज़बूत पकड़ को बढ़ाने के लिए भी है.