देशभर में दशहरा के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व विजयादशमी के त्योहार पर वैश्विक महामारी कोरोना के कारण इस साल भी बड़े आयोजन नहीं हो पा रहे. दशहरे पर जहां लोग रावण दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाते हैं तो वहीं एक ऐसा समाज भी है जो लंकापति के दहन पर शोक में डूब जाता है. रावण के वंशज होने का दावा करने वाले गोधा श्रीमाली समाज के लोग इस दिन शोक मनाते हैं. दशहरे के मौके पर रावण दहन के बाद इस समाज के लोगों की ओर से रावण दहन के धुएं को देखकर स्नान करते हैं और उसके बाद जनेऊ बदल कर ही खाना खाते हैं. दशहरे के दिन शोक मनाने वाले सभी श्रीमाली समाज के लोग अपने आप को रावण के वंशज बताते हैं. मान्यता के अनुसार जब त्रेता युग में रावण की शादी हुई थी उस समय बारात जोधपुर के मंडोर आई थी.
रावण का विवाह मंडोर में मंदोदरी के साथ हुआ था. इसके बाद बारात में आए गोधा परिवार के लोग यहीं पर बस गए. ऐसे में खुद को रावण के वंशज बताने वाले गोधा श्रीमाली समाज के लोग इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं. गोधा श्रीमाली समाज के लोग इस दिन रावण की पूजा करते हैं. सूरसागर स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में रावण का मंदिर भी बना हुआ है. यह मंदिर काफी पुराना है और गोधा श्रीमाली समाज के कमलेश दवे ने इस मंदिर का निर्माण कराया था.
दशहरे के दिन इस मंदिर में रावण की भव्य पूजा-अर्चना भी की जाती है. गोधा श्रीमाली ब्राह्मणों की ओर से मंदिर यह बनवाया गया है. मंदिर के पुजारी और रावण के वंशज अजय दवे का कहना है कि रावण एक महान संगीतज्ञ, वेदों का ज्ञाता और बलशाली व्यक्ति था. ऐसे में उसमें कई गुण थे जिसको देखते हुए देश के अलग-अलग राज्यों से इस मंदिर में दर्शन करने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु भी आते हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि जो लोग संगीत में रुचि रखते हैं और अपना भविष्य बनाना चाहते हैं, ऐसे छात्र और युवा भी रावण के दर्शन करने के लिए इस मंदिर में आते हैं.